google() // Google's Maven repository https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 1. आध्यात्मिकता के नशा की संगत और ज्योतिष : ।। गया जी मे पितृतर्पण ।।

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।। गया जी मे पितृतर्पण ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। गया जी मे पितृतर्पण ।।


 गया जी मे पितृतर्पण :


पितृ पक्ष : पितरों की मुक्ति के मात्र 2 स्थान, पहुंच गए तो पितृदोष से शर्तिया मुक
श्राद्ध पक्ष में पितरों की मुक्ति हेतु किए जाने वाले कर्म तर्पण, भोज और पिंडदान को उचित रीति से नदी के किनारे किया जाता है। 

इसके लिए देश में कुछ खास स्थान नियुक्त हैं। 

देश में श्राद्ध पक्ष के लिए लगभग 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है परंतु मात्र 2 स्थान ऐसे हैं जिसकी महिमा के बारे में पुराणों में उल्लेख मिलता है।।

1. गया: पुराणों के अनुसार पितरों के लिए खास आश्विन माह के कृष्ण पक्ष या पितृपक्ष में पवित्र फल्गु नदी के तट पर बसे मोक्षधाम गयाजी नगर में पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और माता - पिता समेत सात पीढ़ियों का उद्धार होता है। 

यहां पर पितरों की मुक्ति के कई कारण बताए गए हैं। 

देशभर के लोग यहीं आकर अपने पितरों को छोड़कर चले जाते हैं। 

यह स्थान तपस्वी गयासुर नामक असुर की देह पर बना है।








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श्राद्ध पक्ष 2020 : दिन के किस समय में करते हैं श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान गया क्षेत्र में भगवान विष्णु पितृदेवता के रूप में विराजमान रहते हैं। 

भगवान विष्णु मुक्ति देने के लिए 'गदाधर' के रूप में गया में स्थित हैं। 

गयासुर के विशुद्ध देह में ब्रह्मा, जनार्दन, शिव तथा प्रपितामह स्थित हैं। 

अत: पिंडदान के लिए गया सबसे उत्तम स्थान है। 

पुराणों अनुसार ब्रह्मज्ञान, गयाश्राद्ध, गोशाला में मृत्यु तथा कुरुक्षेत्र में निवास- 

ये चारों मुक्ति के साधन हैं- 

गया में श्राद्ध करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नीगमन और उक्त संसर्ग - जनित सभी महापातक नष्ट हो जाते हैं।: 

श्राद्ध करने के प्रमुख 7 स्थान कहते हैं कि गया वह आता है जिसे अपने पितरों को मुक्त करना होता है। 

लोग यहां अपने पितरों या मृतकों की आत्मा को हमेशा के लिए छोड़कर चले जाता है। 

मतलब यह कि प्रथा के अनुसार सबसे पहले किसी भी मृतक तो तीसरे वर्ष श्राद्ध में लिया जाता है और फिर बाद में उसे हमेशा के लिए जब गया छोड़ दिया जाता है तो फिर उसके नाम का श्राद्ध नहीं किया जाता है।

कहा जाता है कि गया में पहले विभिन्न नामों के 360 वेदियां थीं जहां पिंडदान किया जाता था। 

इनमें से अब 48 ही बची है। 

यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है। 

इसके अतिरिक्त वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख है। 

यही कारण है कि देश में श्राद्घ के लिए 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है...! 

जिसमें बिहार के गया का स्थान सर्वोपरि है।

क्या पुनर्जन्म के बाद भी व्यक्ति को श्राद्ध लगता है?






2. ब्रह्मकपाली  कहते हैं कि गया में श्राद्ध करने के उपरांत अंतिम श्राद्ध उत्तरखंड के बदरीकाश्रम क्षेत्र के 'ब्रह्मकपाली' में किया जाता है। 

गया के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। 

कहते हैं जिन पितरों को गया में मुक्ति नहीं मिलती या अन्य किसी और स्थान पर मुक्ति नहीं मिलती उनका यहां पर श्राद्ध करने से मुक्ति मिल जाती है। 

यह स्थान बद्रीनाथ धाम के पास अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। 

पांडवों ने भी अपने परिजनों की आत्म शांति के लिए यहां पर पिंडदान किया था। 

पुराणों के अनुसार यह स्थान महान तपस्वियों और पवित्र आत्माओं का है।

श्रीमद्भागवत पुराण अनुसार यहां सूक्ष्म रूप में महान आत्माएं निवासरत हैं। 

ब्रह्म कपाली में किया जाने वाला पिंडदान आखिरी माना जाता है। 

इस के बाद उक्त पूर्वज के निमित्त कोई पिंडदान नहीं किया जाता है।

ब्रह्मा कपाल की स्टोरी : मान्यता अनुसार भगवान ब्रह्मा के पांच सिर थे। 

जब उन्होंने अपनी पुत्री पर गलत दृष्टि डाली तो शिवजी ने उनका पांचवां सिर काट दिया था जो इसी स्थान पर गिरा। 

इसी लिए यह स्थान ब्रह्मा कपाल कहलाता है। 

यही पर शिवजी को ब्रह्म हत्या के श्राप से मुक्ति भी मिली थी।
                          
पितृ श्राद्ध...!

माथे का पसीना अपने दुपट्टे से पोंछती हुई , सुनयना किचन से निकल कर आई और अपने कमरे में रखे सोफे पर, धम्म से बैठ गई। 

थकान से पूरा शरीर दर्द कर रहा था उसका। 

सितंबर का महीना था और पितृपक्ष चल रहे थे। 

आज उसके ससुर जी का श्राद्ध था। 

बस थोड़ी देर पहले ही पण्डित जी और कुछ रिश्तेदार भोजन ग्रहण कर घर से गए थे।

सबने उसके हाथ के बनाए भोजन की खूब तारीफ़ की थी,खासकर उसकी बनाई हुई खीर सबको खूब पसंद आई थी। 

सभी मेहमान तृप्त होकर गए थे। 

इस बात की संतुष्टि साफ झलक रही थी सुनयना के चेहरे पर।

कहते है यदि पितृ श्राद्ध में भोजन करने वाले लोग तृप्त होकर जाएं तो समझ लीजिए आपके पितृ भी तृप्त हो गए।

"चलो ज़रा खीर चखी जाए । 

मैं भी तो देखूं कैसी बनी है खीर, जो सब इतनी तारीफ कर रहे थे।"

बुदबुदाते हुए सुनयना, एक कटोरी में थोड़ी सी खीर लिए वापस अपने कमरे में आ गई। 

ड्राई फ्रूट्स से भरी हुई खीर वाकई बहुत स्वदिष्ट बनी थी।

वैसे सुनयना को मीठा ज्यादा पसंद नही था। 

पति और बच्चे भी मीठे से ज्यादा ,चटपटे व्यंजन पसंद करते थे तो खीर घर में कभी कभार ही बनती थी।

पर एक व्यक्ति थे घर में ,जो खीर के दीवाने थे। 

वो थे सुनयना के ससुर , स्वर्गीय मणिशंकर जी। 

वे अक्सर अपनी पत्नी ,उमा से खीर बनाने को कहा करते और उमा जी भी ,खूब प्रेम से उनके लिए खीर बनाया करती किंतु उमा जी के स्वर्गवास के बाद सब बदल गया।

एक बार मणि शंकर जी ने सुनयना से कहा " बहु थोड़ी खीर बना दे ,आज बहुत जी कर रहा है खीर खाने को।"

इतना सुनते ही सुनयना उन पर बरस पड़ी थी..!

" क्या पिता जी, आपको पता है ना घर में आपके अलावा और कोई खीर नहीं खाता। 

अब मैं स्पेशली आपके लिए खीर नहीं बना सकती और भी बहुत काम रहते है मुझे घर पर ,और बुढ़ापे में इतना चटोरापन अच्छा नहीं। "

बहु से इस तरह के व्यवहार की कल्पना भी नहीं की थी मणिशंकर जी ने। 

दिल को बहुत ठेस पहुंची थी उनके। 

उस दिन वे अपनी स्वर्गवासी पत्नी को याद कर, खूब रोए। 

बस उस दिन से उन्होंने सुनयना से कुछ भी कहना बंद कर दिया। 

कभी कभी बहुत इच्छा होती उन्हें खीर खाने की। 

पर बहु के डर से उन्होंने अपनी इस इच्छा को भी दबा दिया।

कुछ दिन बाद मणि शंकर जी भी इस संसार को छोड़ चले गए। 

परन्तु खीर खाने की इच्छा उनके मन में ही रह गई।

कहते हैं श्राद्ध में पितरों का मनपसंद भोजन यदि पंडितों को खिला दो तो पितृ देव प्रसन्न हो जाते हैं इसीलिए तो आज सुनयना ने खीर बनाई थी।

" चलो आज बाबूजी की आत्मा को भी तृप्ति मिल गई होगी। 

उनकी मनपसंद खीर जो बनाई थी आज ।" 

सुनयना मुस्कुराते हुए बुदबुदाई और बची हुई खीर खाने लगी।

तभी उसके कानो में एक आवाज सुनाई दी " बहु थोड़ी खीर खिला दे आज बहुत जी कर रहा है खीर खाने का।"

एक बार, दो बार, कई बार ये आवाज सुनयना के कानों में गूंजने लगी।

ये उसके ससुरजी की आवाज़ थी। 

सुनयना थर थर कांपने लगी। 

उसने सुना था कि पितृ पक्ष में पितृ धरती पर विचरण करते है। 

डर के मारे सुनयना के हाथ से खीर की कटोरी छटक कर ज़मीन पर गिर गई।

उसने दोनो हाथ अपने कानों पर रख दिए। 

उसे अपने ससुर जी से किया हुआ दुर्व्यवहार याद आ गया। 

अनायास ही उसके आंखों से पश्ताचाप की अश्रु धारा फूट पड़ी।

अब कमरे में एक अजीब सी शांति थी। 

सब कुछ एक दम शांत । 

अशांत था तो बस, सुनयना का मन। 

वो अब ये जान गई थी कि जो तृप्ति आप एक मनुष्य को उसके जीते जी दे सकते हैं....! 

वो तृप्ति आप उसके मरणोपरांत, हजारों दान पुण्य या पूजा पाठ से भी नहीं दे सकते इस लिये बुजुर्गों की जीतेजी सेवा मरणोपरांत श्राद्ध कर्म से बहुत बेहतर है।

जय जय परशुरामजी....!!!!

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Ramanatha Swami Covil Car Parking Ariya Strits , Nr. Maghamaya Ammaan Covil Strits , V.O.C. Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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