google() // Google's Maven repository https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 1. आध्यात्मिकता के नशा की संगत और ज्योतिष : 09/09/20

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।। ज्योतिष में श्राद्ध का महत्व और महातम ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश


।। ज्योतिष में श्राद्ध का महत्व और महातम ।।


ज्योतिष में श्राद्ध का महत्व और महातम :


श्राद्ध  का प्रचलन ----



 1--।।श्राद्ध का प्रचलन कब शुरु हुआ ?


2---- सबसे पहले किसने किया था श्राद्ध ? ।।

प्राचीन काल में ब्रह्माजी के पुत्र हुए महर्षि अत्रि । 






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उन्हीं के वंश में भगवान दत्तात्रेयजी का आविर्भाव हुआ । 

दत्तात्रेयजी के पुत्र हुए महर्षि निमि और निमि के एक पुत्र हुआ श्रीमान् । 

श्रीमान् बहुत सुन्दर था । 






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कठोर तपस्या के बाद उसकी मृत्यु होने पर महर्षि निमि को पुत्र शोक के कारण बहुत दु:ख हुआ । 

अपने पुत्र की उन्होंने शास्त्रविधि के अनुसार अशौच ( सूतक ) निवारण की सारी क्रियाएं कीं । 





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फिर चतुर्दशी के दिन उन्होंने श्राद्ध में दी जाने वाली सारी वस्तुएं एकत्रित कीं ।

अमावस्या को जागने पर भी उनका मन पुत्र शोक से बहुत व्यथित था । 






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परन्तु उन्होंने अपना मन शोक से हटाया और पुत्र का श्राद्ध करने का विचार किया ।

उनके पुत्र को जो - जो भोज्य पदार्थ प्रिय थे और शास्त्रों में वर्णित पदार्थों से उन्होंने भोजन तैयार किया ।





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महर्षि ने सात ब्राह्मणों को बुलाकर उनकी पूजा-प्रदक्षिणा कर उन्हें कुशासन पर बिठाया । 

फिर उन सातों को एक ही साथ अलोना सावां परोसा । 

इसके बाद ब्राह्मणों के पैरों के नीचे आसनों पर कुश बिछा दिये और अपने सामने भी कुश बिछाकर पूरी सावधानी और पवित्रता से अपने पुत्र का नाम और गोत्र का उच्चारण करके कुशों पर पिण्डदान किया ।






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श्राद्ध करने के बाद भी उन्हें बहुत संताप हो रहा था कि वेद में पिता - पितामह आदि के श्राद्ध का विधान है, मैंने पुत्र के निमित्त किया है । 

मुनियों ने जो कार्य पहले कभी नहीं किया वह मैंने क्यों कर डाला ?





उन्होंने अपने वंश के प्रवर्तक महर्षि अत्रि का ध्यान किया तो महर्षि अत्रि वहां आ पहुंचे ।

उन्होंने सान्त्वना देते हुए कहा—

‘डरो मत ! 





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तुमने ब्रह्माजी द्वारा श्राद्ध विधि का जो उपदेश किया गया है, उसी के अनुसार श्राद्ध किया है ।’ 

ब्रह्माजी के उत्पन्न किये हुए कुछ देवता ही पितरों के नाम से प्रसिद्ध हैं; उन्हें ‘उष्णप’ कहते हैं । 

श्राद्ध में उनकी पूजा करने से श्राद्धकर्ता के पिता - पितामह आदि पितरों का नरक से उद्धार हो जाता है ।






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 *सबसे पहले श्राद्ध कर्म करने वाले महर्षि निमि"*


इस प्रकार सबसे पहले निमि ने श्राद्ध का 

आरम्भ किया । 

उसके बाद सभी महर्षि उनकी देखादेखी शास्त्र विधि के अनुसार पितृयज्ञ ( श्राद्ध ) करने लगे । 





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ऋषि पिण्डदान करने के बाद तीर्थ के जल से पितरों का तर्पण भी करते थे । 

धीरे - धीरे चारों वर्णों के लोग श्राद्ध में देवताओं और पितरों को अन्न देने लगे ।





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 *श्राद्ध में पहले अग्नि का भोग क्यों लगाया जाता है ?"*


लगातार श्राद्ध में भोजन करते-करते देवता और पितर पूरी तरह से तृप्त हो गये । 

अब वे उस अन्न को पचाने का प्रयत्न करने लगे ।

अजीर्ण ( indigestion ) से उन्हें बहुत कष्ट होने लगा । 

सोम देवता को साथ लेकर देवता और पितर ब्रह्माजी के पास जाकर बोले—

‘निरन्तर श्राद्ध का अन्न खाते-खाते हमें अजीर्ण हो गया है, इससे हमें बहुत कष्ट हो रहा है, हमें कष्ट से मुक्ति का उपाय बताइए।’

ब्रह्माजी ने अग्निदेव से कोई उपाय बताने को कहा । 

अग्निदेव ने कहा—

‘देवताओ और पितरो ! 

अब से श्राद्ध में हम लोग साथ ही भोजन करेंगे । 

मेरे साथ रहने से आप लोगों का अजीर्ण दूर हो जाएगा ।’

यह सुनकर सबकी चिन्ता मिट गयी; इसी लिए श्राद्ध में पहले अग्नि का भाग दिया जाता है ।

श्राद्ध में अग्नि का भोग लगाने के बाद जो पितरों के लिए पिण्डदान किया जाता है ! 

उसे ब्रह्मराक्षस दूषित नहीं करते हैं । 

श्राद्ध में अग्निदेव को उपस्थित देखकर राक्षस वहां से भाग जाते हैं ।





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सबसे पहले पिता को, उनके बाद पितामह को और उनके बाद प्रपितामह को पिण्ड देना चाहिए — यही श्राद्ध की विधि है । 


प्रत्येक पिण्ड देते समय एकाग्रचित्त होकर गायत्री - मन्त्र का जप और ‘सोमाय पितृमते स्वाहा’ का उच्चारण करना चाहिए ।

इस प्रकार मरे हुए मनुष्य अपने वंशजों द्वारा पिण्डदान पाकर प्रेतत्व के कष्ट से छुटकारा पा जाते हैं । 

पितरों की भक्ति से मनुष्य को पुष्टि, आयु, संतति, सौभाग्य, समृद्धि, कामनापूर्ति, वाक् सिद्धि, विद्या और सभी सुखों की प्राप्ति होती है । 

सुन्दर - सुन्दर वस्त्र, भवन और सुख साधन श्राद्ध कर्ता को स्वयं ही सुलभ हो जाते हैं।






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जय श्री कृष्ण...!!!

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
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जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। ज्योतिष में श्राद्ध का महात्म्य ओर महत्व ।।🌹🌹🌹जय श्री कृष्ण🙏🙏🙏

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आज आश्विन मास कृष्ण पक्ष  वर्षा ऋतू सप्तमी बुधवार   कृत्तिका / रोहिणी नक्षत्र है

आज महालक्ष्मी व्रत पूजन अनुष्ठान समाप्ति (   अर्धरात्रि चंन्द्रोदय व्यापिनी ग्राह्य )  

चंन्द्रोदय (रा १० \ २४  सप्तमी  की श्राद्ध होगी  

आज  स्वर्ग  की भद्रा  दिन में ८ \ ५९ तक
सर्वार्थ सिद्धयोग सम्पूर्ण दिन रवि योग दिन  में ८ \ ४० तक  बाद 

कल अष्टमी की श्राद्ध होगी और  जीवत्पुत्रिका व्रत  होगा 
इसी प्रकार श्राद्ध की जानकारी प्रति दिन दे दी जायेगी 

गृहों का राशि में संचरण 
सूर्य / सिंह 
चंद्र /  वृष  
मंगल / मेष  
बुध /  कन्या 
गुरु / 4धनु 
#शुक्र / कर्क 
शनि मकर 
#राहु मिथुन
#  केतु / धनु 

#नोट # चिन्ह वक्री  की पहचान है

जय श्री कृष्ण...!!!
आप का दिन शुभ हो 
🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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