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जय द्वारकाधीश
ब्रह्मचार्य ओर जन्मकुंडली ... ?.
( देखे विभाग 2 के ऊपर )
ब्रह्मचार्य का यौगि की ही साधना नही है ।
पूर्व के समय मे देखे तो ब्राह्मण ओर क्षत्रिय सहित सब लोग गुरुकुल के आश्रम में ही रहकर पठाई साधना कर रहे थे ।
पूर्व के समय मे जब लड़का 5 साल से 6 साल का हो जाता तो सीधा गुरुकुल में ही उसको शस्त्र ओर शास्त्र दोनो विधाओ से निपुणता करनी पड़ती थी ।
ब्रह्मचार्य के बिना तो कोई भी किसी भी कार्य सिद्ध होने का संभव ही नही है ।
पूर्व के समय मे तो स्वास्थ्य का लाभ के लिये , बल - बुद्धि का विकास करने का लाभ के लिये , विद्याभ्यास के लिये , शस्त्रभ्यास के लिये तथा योगाभ्यास के लिये भी ब्रह्मचार्य की आवश्यकता बहुत होती थी ।
उसमे भी कुटुबिक सुख शांति उत्तम संतान की स्वर्ग की प्राप्ति सिद्धियों की प्राप्ति , अन्तःकरण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति --- सब कुछ ब्रह्मचार्य से ही संभव है ।
ब्रह्मचार्य के बिना कुछ नही हो शकता ।
सांख्ययोग , ज्ञानयोग , भक्तियोग , राजयोग ओर हठयोग सभी साधनाओ में ब्रह्मचार्य की आवश्यकता होती है ।
जन्म कुंडली मे भी देखो तो ऐसा ग्रहयोग भी बन जाता है कि माता पिता उसका संतानों का शादी लग्न के प्रसंग भी बहुत धाम धूम से करवा देगा ।
लेकिन जातक का मन ही संसार मे लगता ही नही होता ।
तो सीधा ब्रह्मचार्य सन्यासी की ओर ले कर जाता है ।
:::: दाखला तरीके ::::::
लग्न :07
सूर्य : 06
चन्द्र : 08
मंगल : 08
बुध : 06
गुरु : 11
शुक : 05
शनि : 05
राहु : 12
केतु : 06
इस कुंडली के आधार पर देखे तो सप्तमेश मालिक द्वितीयेश में चन्द्र के साथ स्वग्रही है ।
शादी लग्न करने के बाद भी इसका मन संसार के तरह आकर्षित नही होता ।
पंचमेश गुरु और अगियारमे शुक्र शनि की युति हठ योग , सांख्ययोग , ज्ञानयोग ओर भक्तियोग देता है !
जब बारमा स्थान पर बिराजमान सूर्य केतु ओर बुध की युति अंखड पूर्ण राजयोग कर रहा है कि सन्यासी जीवन मे जीवन गुजारने के बाद भी परिपूर्ण अच्छा तरह से राज कर शकते है ।
ब्रह्मचार्य सन्यासी योग वाले लोगो को सब का साथ एक ही जैसा व्यवहार ओर एक ही जैसा वर्तन करते दिखाई देगा वो कभी उसका मुह से ऐसा बोलेगा के ये मेरा ये तेरा उसका लिये सब एक समान ही होगा ।
अमुक अमुक जातकों की जन्मकुंडली बताती है ।
कि जातक पूर्ण संन्यासी बनेगा या नहीं ।
क्योंकि आज के समय मे तो पत्नी कोर्ट कचहरी के चक्कर मे फसा देगा तो जातक सन्यास की ओर चला भी जाएगा ।
लेकिन उसका मन तो संसार की ओर ही ज्यादा आकर्षित रहेगा तो वो कभी पूर्ण सन्यासी ब्रह्मचार्य योग का पालन तो कर ही नही शकते ।
हिंदू धर्म में आश्रम व्यवस्था के अनुसार ही प्रत्येक मनुष्य को अपना कर्म करना होता है।
लेकिन कई लोगों के मन में बचपन से ही संन्यास की तीव्र लालसा होती है।
ऐसा क्यों होता है कि कई लोग बचपन से संन्यासी, वैरागी बनना चाहते हैं।
वैदिक ज्योतिष की मानें तो कोई जातक संन्यासी बनेगा या नहीं, इसका पता उसकी जन्मकुंडली के ग्रहों को देखकर लगाया जा सकता है।
:::: दाखला तरीके ;;;;;
लग्न : 01
सूर्य : 06
चन्द्र : 02
मंगल : 02
बुध : 07
गुरु : 02
शुक्र : 07
शनि : 10
राहु : 11
केतु : 02
इस जातक को न उसका कुटुंब वालो का सहकार के न हेतु मित्रो का कोई सहकार उसमे भी इस जातक को उसका पत्नी और पत्नी के मायके वालों का टेन्शन कोर्ट कचहरी पोलिस वालो की परेशानी के हिसाब से सन्यास ब्रह्मचार्य की ओर चल तो गया ।
लेकिन अमुक समय मे सन्यासी रहकर भी बहुत सुख सुविधाओं प्राप्त कर भी लिये ।
बाद फिर उसका मन ब्रह्मित हो गया पूर्ण तरह का अंखड ब्रह्मचार्य का पालन तो हो ही नही शकता ।
उसका मन भष्ट बन गया मिथुन चेष्ठाओं में मन लग गया ।
क्योंकि ब्रह्मचार्य का पालन करने में तो बहुत प्रकार का मन संकोचित करके रखना पड़ता है ।
सब प्रकार के मैथुन का नाम ही ब्रह्मचार्य होता है ।
शास्त्रों में ब्रह्मचार्य को त्याग करने का बहुत प्रकार का मैथुन का नाम दिया होता है ।
स्मरण , श्रवण , कीर्तन , प्रेक्षक , केली , शुंगर , गुह्यभाषण , ओर स्पर्श इतना प्रकार का मैथुन होता है वो सब के ऊपर ही विजय प्राप्त कर शकता है वही होता है अंखड पूर्ण ब्रह्मचार्य ।
आज के समय मे लोगो को सन्यासी बनना अच्छा जरूर लगता है लेकिन जैसा थोड़ाक वर्ष या समय प्रसार हो जाएगा तो किसी न किसी के साथ कुछ न कुछ प्रकार की चेष्ठा करने के बिना रह नही शकता ।
बाद टीवी पेपरों में चमकता शितारो जैसा चमकता रहेगा ।
:::: दाखला तरीके :::::
लग्न : 03
सूर्य : 03
चन्द्र : 02
मंगल : 02
बुध : 10
गुरु : 09
शुक्र : 03
शनि : 08
राहु : 07
केतु : 01
इस जातक की कुंडली मे भी जातक को सन्यासी तो जरूर बना देता लेकिन बाद दुराचारी का कंलक भी जल्दी ही लग जाता है ।
इस जातक का कुंडली के कुछ योग ऐसे भी होते हैं जब व्यक्ति संन्यासी होते हुए भी छल,कपट में लिप्त होता है या सब कुछ छोड़ने् के बाद भी विरक्त जीवन में दुर्भाग्य को भोगता है ।
कुंडली में संन्यास योग के ग्रहों का साथ सूर्य,शनि और मंगल दे रहे हो तो व्यक्ति के ऊपर पत्नी सहित कुटुबिक मानसिक टेन्शन से घबराकर वैराग्य अपना लेता है।
यदि कुंडली में यदि दशमेश बली न होकर सप्तम स्थान पर स्थित हो तो व्यक्ति के दुराचारी छद्म सन्यासी होने की सम्भावना बन जाती है ।
यदि बली शनि केंद्र में या त्रिकोण हो और चन्द्रमा जिस राशि में हो उसका स्वामी दुर्बल होकर शनि को देखता हो तो व्यक्ति सन्यासी होते हुए भी दुर्भाग्य का जीवन जीता है ।
जो आठ प्रकार का मैथुन की चेष्ठाओं छोड़ शकता है वही सन्यासी ब्रह्मचार्य बन शकता है ।
लेकिन आज के समय का दुराचार्य सन्यासी को न संसार का मौह छूटता है कि न सन्यास ब्रह्मचार्य में जीव लगता है ।
वो तो सिर्फ दिखावे के खातिर ही भेख पकड़कर बैठ जाएगा बाद तो उसका हालत तो धोबी के कुत्ता जैसा जीवन न घर का के न घाट का ऐसा परिस्थितियों से पसार होता है ।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
SHREE SARSWATI JYOTISH KARYALAY
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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जय द्वारकाधीश....
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