google() // Google's Maven repository https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 1. आध्यात्मिकता के नशा की संगत और ज्योतिष : ब्रह्मचार्य ओर जन्म कुंडली...? ( भाग 2 )/ज्योतिष - ग्रह - नक्षत्र :

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ब्रह्मचार्य ओर जन्म कुंडली...? ( भाग 2 )/ज्योतिष - ग्रह - नक्षत्र :

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

ब्रह्मचार्य ओर जन्मकुंडली ... ?.
   ( देखे विभाग 2 के ऊपर ) ज्योतिष - ग्रह - नक्षत्र :


ब्रह्मचार्य का यौगि की ही साधना नही है । 

पूर्व के समय मे देखे तो ब्राह्मण ओर क्षत्रिय सहित सब लोग गुरुकुल के आश्रम में ही रहकर पठाई साधना कर रहे थे । 

पूर्व के समय मे जब लड़का 5 साल से 6 साल का हो जाता तो सीधा गुरुकुल में ही उसको शस्त्र ओर शास्त्र दोनो विधाओ से निपुणता करनी पड़ती थी ।

ब्रह्मचार्य के बिना तो कोई भी किसी भी कार्य सिद्ध होने का संभव ही नही है । 

पूर्व के समय मे तो स्वास्थ्य का लाभ के लिये , बल - बुद्धि का विकास करने का  लाभ के लिये , विद्याभ्यास के लिये , शस्त्रभ्यास के लिये तथा योगाभ्यास के लिये भी ब्रह्मचार्य की आवश्यकता बहुत होती थी । 



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उसमे भी कुटुबिक सुख शांति उत्तम संतान की स्वर्ग की प्राप्ति सिद्धियों की प्राप्ति , अन्तःकरण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति --- सब कुछ ब्रह्मचार्य से ही संभव है । 

ब्रह्मचार्य के बिना कुछ नही हो शकता ।

सांख्ययोग , ज्ञानयोग , भक्तियोग , राजयोग ओर हठयोग  सभी साधनाओ में ब्रह्मचार्य की आवश्यकता होती है । 

जन्म कुंडली मे भी देखो तो ऐसा ग्रहयोग भी बन जाता है कि माता पिता उसका संतानों का शादी लग्न के प्रसंग भी बहुत धाम धूम से करवा देगा । 
लेकिन जातक का मन ही संसार मे लगता ही नही होता । 

तो सीधा ब्रह्मचार्य सन्यासी की ओर ले कर जाता है ।

:::: दाखला तरीके ::::::

लग्न :07
सूर्य : 06 
चन्द्र : 08
मंगल : 08
बुध : 06 
गुरु : 11
शुक : 05
शनि :  05 
राहु  : 12
केतु  : 06

इस कुंडली के आधार पर देखे तो सप्तमेश मालिक द्वितीयेश में चन्द्र के साथ स्वग्रही है । 

शादी लग्न करने के बाद भी इसका मन संसार के तरह आकर्षित नही होता । 

पंचमेश गुरु और अगियारमे शुक्र शनि की युति हठ योग , सांख्ययोग , ज्ञानयोग ओर भक्तियोग देता है !

जब बारमा स्थान पर बिराजमान सूर्य केतु ओर बुध की युति अंखड पूर्ण राजयोग कर रहा है कि सन्यासी जीवन मे जीवन गुजारने के बाद भी परिपूर्ण अच्छा तरह से राज कर शकते है ।

ब्रह्मचार्य सन्यासी योग वाले लोगो को सब का साथ एक ही जैसा व्यवहार ओर एक ही जैसा वर्तन करते दिखाई देगा वो कभी उसका मुह से ऐसा बोलेगा के ये मेरा ये तेरा उसका लिये सब एक समान ही होगा ।






अमुक अमुक जातकों की जन्मकुंडली बताती है । 

कि जातक पूर्ण संन्यासी बनेगा या नहीं । 

क्योंकि आज के समय मे तो पत्नी कोर्ट कचहरी के चक्कर मे फसा देगा तो जातक सन्यास की ओर चला भी जाएगा । 

लेकिन उसका मन तो संसार की ओर ही ज्यादा आकर्षित रहेगा तो वो कभी पूर्ण सन्यासी ब्रह्मचार्य योग का पालन तो कर ही नही शकते ।

हिंदू धर्म में आश्रम व्यवस्था के अनुसार ही प्रत्येक मनुष्य को अपना कर्म करना होता है। 

लेकिन कई लोगों के मन में बचपन से ही संन्यास की तीव्र लालसा होती है। 

ऐसा क्यों होता है कि कई लोग बचपन से संन्यासी, वैरागी बनना चाहते हैं। 

वैदिक ज्योतिष की मानें तो कोई जातक संन्यासी बनेगा या नहीं, इसका पता उसकी जन्मकुंडली के ग्रहों को देखकर लगाया जा सकता है।

:::: दाखला तरीके ;;;;;

लग्न : 01
सूर्य  : 06
चन्द्र  : 02
मंगल  : 02
बुध  :  07
गुरु  : 02
शुक्र  : 07
शनि  : 10
राहु  : 11
केतु  : 02

इस जातक को न उसका कुटुंब वालो का सहकार के न हेतु मित्रो का कोई सहकार उसमे भी इस जातक  को उसका पत्नी और पत्नी के मायके वालों का टेन्शन कोर्ट कचहरी पोलिस वालो की परेशानी के हिसाब से सन्यास ब्रह्मचार्य  की ओर चल तो गया । 

लेकिन अमुक समय मे सन्यासी रहकर भी बहुत सुख सुविधाओं प्राप्त कर भी लिये । 

बाद फिर उसका मन ब्रह्मित हो गया पूर्ण तरह का अंखड ब्रह्मचार्य का पालन तो हो ही नही शकता । 

उसका मन भष्ट बन गया मिथुन चेष्ठाओं में मन लग गया । 

क्योंकि ब्रह्मचार्य का पालन करने में तो बहुत प्रकार का मन संकोचित करके रखना पड़ता है । 

सब प्रकार के मैथुन का नाम ही ब्रह्मचार्य होता है । 
शास्त्रों में ब्रह्मचार्य को त्याग करने का बहुत प्रकार का मैथुन का नाम दिया होता है ।

स्मरण , श्रवण , कीर्तन , प्रेक्षक , केली , शुंगर , गुह्यभाषण , ओर स्पर्श इतना प्रकार का मैथुन होता है वो सब के ऊपर ही विजय प्राप्त कर शकता है वही होता है अंखड पूर्ण ब्रह्मचार्य । 

आज के समय मे लोगो को सन्यासी बनना अच्छा जरूर लगता है लेकिन जैसा थोड़ाक वर्ष या समय प्रसार हो जाएगा तो किसी न किसी के साथ कुछ न कुछ प्रकार की चेष्ठा करने के बिना रह नही शकता । 

बाद टीवी पेपरों में चमकता शितारो जैसा चमकता रहेगा ।

:::: दाखला तरीके :::::

लग्न : 03
सूर्य  : 03
चन्द्र : 02
मंगल : 02
बुध  : 10
गुरु  : 09
शुक्र : 03
शनि : 08
राहु  : 07
केतु  : 01

इस जातक की कुंडली मे भी जातक को सन्यासी तो जरूर बना देता लेकिन बाद दुराचारी का कंलक भी जल्दी ही लग जाता है ।

इस जातक का कुंडली  के कुछ योग ऐसे भी होते हैं जब व्यक्ति संन्यासी होते हुए भी छल,कपट में लिप्त होता है या सब कुछ छोड़ने् के बाद भी विरक्त जीवन में दुर्भाग्य को भोगता है । 

कुंडली में संन्यास योग के ग्रहों का साथ सूर्य,शनि और मंगल दे रहे हो तो व्यक्ति के ऊपर पत्नी सहित कुटुबिक मानसिक टेन्शन से घबराकर वैराग्य अपना लेता है।

यदि कुंडली में यदि दशमेश बली न होकर सप्तम स्थान पर स्थित हो तो व्यक्ति के दुराचारी छद्म सन्यासी होने की सम्भावना बन जाती है । 

यदि बली शनि केंद्र में या त्रिकोण हो और चन्द्रमा जिस राशि में हो उसका स्वामी दुर्बल होकर शनि को देखता हो तो व्यक्ति सन्यासी होते हुए भी दुर्भाग्य का जीवन जीता है ।

जो आठ प्रकार का मैथुन की चेष्ठाओं छोड़ शकता है वही सन्यासी ब्रह्मचार्य बन शकता है ।

लेकिन आज के समय का दुराचार्य सन्यासी को न संसार का मौह छूटता है कि न सन्यास ब्रह्मचार्य में जीव लगता है । 

वो तो सिर्फ दिखावे के खातिर ही भेख पकड़कर बैठ जाएगा बाद तो उसका हालत तो धोबी के कुत्ता जैसा जीवन न घर का के न घाट का ऐसा परिस्थितियों से पसार होता है । 

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🪐 ज्योतिष- ग्रह- नक्षत्र 🪐

{ उधार लेन - देन व मंगल ग्रह } 

यदि आप ब्याज का पैसा कमाने के उद्देश्य से उधार लेन - देन करते हैं तो ऐसी स्थिति में आप अपनी जन्म कुंडली में मंगल व राहु ग्रहों की स्थिति जरूर जांच लेनी चाहिए। 

आज इसी विषय पर आपको कुछ संक्षिप्त जानकारी जो की मंगल ग्रह से संबंधित है आपको प्रदान करते हैं। यहाँ कुछ भाव हैं जिनमें मंगल ग्रह होने पर पैसा उधार देने से बचना चाहिए:

🔻द्वितीय भाव में मंगल - :

द्वितीय भाव में मंगल होने पर पैसा उधार देने से बचना चाहिए....! 

क्योंकि इससे वित्तीय नुकसान और कर्ज की समस्या हो सकती है।

🔻चतुर्थ भाव - : 

चतुर्थ भाव में मंगल होने पर पैसा उधार देने से बचना चाहिए...! 

क्योंकि इससे वित्तीय नुकसान और व्यय की समस्या हो सकती है।

🔻षष्ठ भाव में मंगल - : 

षष्ठ भाव में मंगल होने पर पैसा उधार देने से बचना चाहिए...! 

क्योंकि इससे कर्ज और वित्तीय विवाद की समस्या हो सकती है।

🔻अष्टम भाव में मंगल - :

अष्टम भाव में मंगल होने पर पैसा उधार देने से बचना चाहिए...! 

क्योंकि इससे वित्तीय नुकसान और अनिश्चितता की समस्या हो सकती है।
 
🔻द्वादश भाव में मंगल - :

द्वादश भाव में भी मंगल होने पर पैसा उधार देने से बचना चाहिए...! 

क्योंकि इससे वित्तीय नुकसान और व्यय की समस्या हो सकती है।

🔻मंगल ग्रह की दृष्टि - : 

इसके अलावा, मंगल की दृष्टि या युति भी महत्वपूर्ण है। 

यदि मंगल की दृष्टि या युति किसी अशुभ ग्रह से द्वितीय, षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव पर हो तो भी पैसा उधार देने से बचना चाहिए।

यदि ऊपर दिए गए भाव में मंगल स्थित है तो पैसा उधार देने से बचना चाहिए और ब्याज इत्यादि का काम नहीं करना चाहिए। 

अपवाद वश कुछ शुभ राशि व शुभ ग्रह के दृष्टि संयोग से आपका पैसा फंसने से बच सकता है...! 

लेकिन इसके विपरीत आपका मंगल ग्रह अशुभ प्रभाव व अशुभ ग्रह के साथ योग बना रहा है तो आपका पैसा लौट कर आने की सहज संभावना नहीं है l

( नोट-: उधार लेन - देन के मामलों में मंगल ग्रह के अलावा अन्य ग्रहों की स्थिति भी महत्वपूर्ण होती है अतः कुंडली के अन्य ग्रहों का भी विश्लेषण जरूर कर लेना चाहिए )
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
SHREE SARSWATI JYOTISH KARYALAY
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Ramanatha Swami Covil Car Parking Ariya Strits , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी..🙏🙏🙏

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