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जय द्वारकाधीश
जन्मकुंडली से ह्दय रोग का ज्ञान ?....
जन्मकुंडली से ह्दय रोग का ज्ञान
हमारी जन्म कुंडली के सही गणना से ही पहले मालूम हो जाता के ह्दय रोग होगा कि नही होगा
हमारा हिन्दू शर्म के श्रीमद्भागवत में भी दिया गया है कि...!
साधवो हदयं महामं साधूनां हदयं तवह्म ।
मदन्यते न जानन्ति नाहं तैंन्यो मनागति ।।
सज्जन मेरा ह्दय है में उनका ह्दय हु ।
वह मेरे सिवाय किसी को नही जानते ओर में जनक सिवाय किसी को नही जानता ।।
ये श्रीमद्भागवत का 9 में अध्याय में 4 / 88 का श्लोक में दिया हुवा है...!
ह्दय रोग आज का आधुनिक जीवन शैली का ही एक सर्व सामान्य भाग ओर सर्व लौकिक भाग कहा जाता है ।
आज के आधुनिक समय मे सामान्य से सामान्य घर का परिवार का टेन्शन, मानसिक तनाव , व्यपारिक आर्थिक टेन्शन , मार्किट में नाम कीर्ति को अंखण्ड रखने की स्पर्धा का भी टेन्शन , अखाध - अपाच्य भोजन ओर शरीर को न मिलने वाले व्यायाम से शरीर की कम क्रिया शक्ति के कारण बेडोलता हो जाना एवं धूम्रपान या मधपान का सेवन इस रोग की ओर ले जाते है ।
जन्म कुंडली के आधार पर तो पक्का मालूम हो ही जाता है कि जातक को कौनसा टेन्शन है ?
जातक कौनसा सेवन का नशा धूम्रपान कर रहे है ?
कितना समय से जातक को धूम्रपान ओर नशा का सेवन की लात लगी चुकी है ?
कौनसा द्वारा जातक को ऐसा रास्ता पर लाये गए है ?
जन्म कुंडली के दष्टि से देखा जाय तो जातक का कुंडली का चतुर्थ भाव वक्ष स्थल का सूचना करेगा जब पंचम भाव जातक का ह्दय का सूचना करेगा ।
सूर्य ह्दय का कारक होता है ।
यदि चतुर्थेश या पंचम स्थान छठा स्थान अष्टम स्थान एवं बारमा स्थान पर सूर्य स्थित हो चन्द्र या सूर्य निर्बल हो चतुर्थेश या पंचमेश क्रूर ग्रहों से दृष्टि या युति तो जातक को ह्दय रोग से पीड़ित होता है ।
यदि शुभ नवमशो से युक्त हो तो रोग की गंभीरता कम भी हो शक्ति है ।
जातक के लग्न स्थान और सप्तम या अष्टम स्थान पर क्रूर ग्रह होता तो जातक को परिवार टेन्शन ज्यादा रहता है ।
जातक के जीवन मे दुतियेश षस्टेश ओर बारमा स्थान पर क्रूर ग्रह हो या सूर्य चन्द्र क्रूर ग्रह की युति में हो तो जातक का मित्र ही जातक का शत्रु बनकर जातक को नशा धूम्रपान का सेवन में चढ़ा देगा ।
:::: दाखला तरीके :::
जन्म तारीख 16।/04/1964
जन्म समय : 10:38
लग्न : 03
सूर्य : 01
चन्द्र : 02
मंगल :12
बुध : 01
गुरु : 01
शुक्र : 02
शनि : 11
राहु : 03
केतु : 09
इस जातक को पहले मित्रो ने साथ सहकार भी दिया बाद जैशा जातक खुद का नाम पर काम दाम यश कीर्ति कामाई करने लगा तो वही मित्रो इसका शत्रु बनकर इसको शराब ध्रूमपान सबाब के नशा में चढ़ा दिया क्योंकि इसका कुंडली पर मंगल गुरु की युति प्रति युति बन रहा है ।
गुरु सूर्य बुध का साथ बिराजमान है वही लग्नेश बुध इसको नाम दाम यश कीर्ति सब कुछ हाशिल आसानी से करवा भी देगा ।
वही मित्र भी शत्रु का भाग रूप से जातक का ही पैसे मौज मस्ती में मशहूर बनाकर जातक का पूर्ण जीवन बिगाड़ देने में कोई कशर कम नही रखेगे...!
जब इस जातक के ऊपर मार्किट में आर्थिक सक्रमण बठ जाती है तब दोस्त पूरा तरह दुश्मनी निभा रहा होता है उसमे जातक को ह्दय रोग का शिकार बन जाता है ।
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कुंडली मे लग्नानुसार जाने राजयोग :
जन्म कुंडली में नौवें और दसवें स्थान का बड़ा महत्त्व होता है।
नौवां स्थान भाग्य का और दसवां कर्म का स्थान होता है।
कोई भी व्यक्ति इन दोनों घरों की वजह से ही सबसे ज्यादा सुख और समृधि प्राप्त करता है।
कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है और अच्छा भाग्य, अच्छे कार्य व्यक्ति से करवाता है।
अगर जन्म कुंडली के नौवें या दसवें घर में सही ग्रह मौजूद रहते हैं तो उन परिस्थितियों में राजयोग का निर्माण होता है।
राज योग एक ऐसा योग होता है जो प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष राजा के समान सुख प्रदान करता है।
इस योग को प्राप्त करने वाला व्यक्ति सभी प्रकार की सुख - सुविधाओं को प्राप्त करने वाला होता है।
ज्योतिष की दुनिया में जिन व्यक्तियों की कुण्डली में राजयोग निर्मित होता है, वे उच्च स्तरीय राजनेता, मंत्री, किसी राजनीतिक दल के प्रमुखया कला और व्यवसाय में खूब मान - सम्मान प्राप्त करते हैं।
राजयोग का आंकलन करने के लिए जन्म कुंडली में लग्न को आधार बनाया जाता है।
कुंडली की लग्न में सही ग्रह मौजूद होते हैं तो राजयोग का निर्माण होता है।
जिस व्यक्ति की कुंडली में राजयोग रहता है उस व्यक्ति को हर प्रकार की सुख - सुविधा और लाभ भी प्राप्त होते हैं।
इस लेख के माघ्यम से आइए जानें कि कुण्डली में राजयोग का निर्माण कैसे होता है-
मेष लग्न - मेष लग्न में मंगल और ब्रहस्पति अगर कुंडली के नौवें या दसवें भाव में विराजमान होते हैं तो यह राजयोग कारक बन जाता है।
वृष लग्न - वृष लग्न में शुक्र और शनि अगर नौवें या दसवें स्थान पर विराजमान होते हैं तो यह राजयोग का निर्माण कर देते हैं।
इस लग्न में शनि राजयोग के लिए अहम कारक बताया जाता है।
मिथुन लग्न - मिथुन लग्न में अगर बुध या शनि कुंडली के नौवें या दसवें घर में एक साथ आ जाते हैं तो ऐसी कुंडली वाले जातक का जीवन राजाओं जैसा बन जाता है।
कर्क लग्न - कर्क लग्न में अगर चंद्रमा और ब्रहस्पति भाग्य या कर्म के स्थान पर मौजूद होते हैं तो यह केंद्र त्रिकोंण राज योग बना देते हैं।
इस लग्न वालों के लिए ब्रहस्पति और चन्द्रमा बेहद शुभ ग्रह भी बताये जाते हैं।
सिंह लग्न - सिंह लग्न के जातकों की कुंडली में अगर सूर्य और मंगल दसमं या भाग्य स्थान में बैठ जाते हैं तो जातक के जीवन में राज योग कारक का निर्माण हो जाता है।
कन्या लग्न - कन्या लग्न में बुध और शुक्र अगर भाग्य स्थान या दसमं भाव में एक साथ आ जाते हैं तो जीवन राजाओं जैसा हो जाता है।
तुला लग्न - तुला लग्न वालों का भी शुक्र या बुध अगर कुंडली के नौवें या दसवें स्थान पर एक साथ विराजमान हो जाता है तो इस ग्रहों का शुभ असर जातक को राजयोग के रूप में प्राप्त होने लगता है।
वृश्चिक लग्न - वृश्चिक लग्न में सूर्य और मंगल, भाग्य स्थान या कर्म स्थान ( नौवें या दसवें ) भाव में एक साथ आ जाते हैं तो ऐसी कुंडली वाले का जीवन राजाओं जैसा हो जाता है।
यहाँ एक बात और ध्यान देने वाली है कि अगर मंगल और चंद्रमा भी भाग्य या कर्म स्थान पर आ जायें तो यह शुभ रहता है।
धनु लग्न - धनु लग्न के जातकों की कुंडली में राजयोग के कारक, ब्रहस्पति और सूर्य माने जाते हैं।
यह दोनों ग्रह अगरनौवें या दसवें घर में एक साथ बैठ जायें तो यह राजयोग कारक बन जाता है।
मकर लग्न - मकर लग्न वाली की कुंडली में अगर शनि और बुध की युति, भाग्य या कर्म स्थान पर मौजूद होती है तो राजयोग बन जाता है।
कुंभ लग्न - कुंभ लग्न वालों का अगर शुक्र और शनि नौवें या दसवें स्थान पर एक साथ आ जाते हैं तो जीवन राजाओं जैसा हो जाता है।
मीन लग्न - मीन लग्न वालों का अगर ब्रहस्पति और मंगल जन्म कुंडली के नवें या दसमं स्थान पर एक साथ विराजमान हो जाते हैं तो यह राज योग बना देते हैं।
पंडित प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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जय द्वारकाधीश....
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