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जय द्वारकाधीश
।। श्री यजुर्वेद के अनुसार नभो मंडल में गंडमूल नक्षत्र का फल / મહા કુંભની શરૂઆત, સ્નાન કરવાથી જીવનમાં આવશે સુખ - સમૃદ્ધિ, જાણો ।।
।। श्री यजुर्वेद के अनुसार नभो मंडल में गंडमूल नक्षत्र का फल ।।
★★खगोड़ के भू मंडल में नक्षत्रों का विज्ञान में गंडमूल नक्षत्र एक रहस्य है
यजुर्वेद में ज्योतिष शास्त्र के खण्ड के अनुसार हमारे नभो मंडल में क्युल 27 नक्षत्रों है ।
उसमें से छ: नक्षत्र ऎसे होते हैं कि जिन्हें गंडमूल नक्षत्र कहा जाता है ।
यह नक्षत्र दो राशियों की संधि पर होते हैं ।
एक नक्षत्र के साथ ही राशि समाप्त होती है और दूसरे नक्षत्र के आरंभ के साथ ही दूसरी राशि आरंभ होती है।
संधिकाल को सदैव ही अशुभ और कष्टकारक माना जाता रहा है।
जैसे ऋतुओं के संधिकाल में रोगों की उत्पत्ति होती है।
दिन एवं रात्रि के संधिकाल में केवल प्रभु की आराधना की जाती है।
घर की दहलीज पर भी कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता हैं…
यही कारण है कि बालक के जन्म लेते ही सर्वाधिक चिंता माता - पिता को बालक के जन्म-नक्षत्र के बारे में होती है।
बालक जैसे ही संसार में जन्म लेता है।
वैसे ही उसके जन्म नक्षत्र के बारे में अवश्य जान लेना चाहते हैं कि कहीं बालक गंडमूल नक्षत्र में तो नहीं है?
यदि गंडमूल में है तो घोर मूल में तो नहीं है?
क्योंकि अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूला तथा रेवती नक्षत्रों में उत्पन्न बालक का मुंह देखना पिता के लिए हानिकारक होता है।
इस प्रकार के संधि कालों में शुभ कार्य, विवाह व यात्रा आदि वर्जित माने जाते हैं।
बुध व केतु के नक्षत्रों को गंडमूल नक्षत्रों में शामिल किया गया है. मीन - मेष, कर्क - सिंह, वृश्चिक - धनु राशियों में गंडमूल नक्षत्र होता है।
रेवती, अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा तथा मूल नक्षत्र को गंडमूल नक्षत्र माना जाता है ।
इन नक्षत्रों में से किसी एक में भी शिशु के जन्म लेने पर बच्चा माता, पिता, स्वयं अथवा अन्य किसी रिश्तेदार पर भारी पड़ता है ।
ऐसा माना गया है।
इसके लिए बच्चे के जन्म के 27 वें दिन शांति पूजा का विधान भी दिया हुवा है ।
जिससे उस गंडमूल नक्षत्र के किसी भी दुषप्रभाव को शांत किया जा सके।
हर बुद्धिमान ज्योतिषी / व्यक्ति गंड मूल की स्तिथि में हर हाल में उसकी शांति कराने की ही सलाह देते है।
गंड मूल की पूजा एक तकनीकी पूजा होती है।
अगर किन्ही कारण वश गंड मूल नक्षत्र की पूजा नही हो सका है तो जन्म नक्षत्र के अनुसार देवता का पूजन करने से अशुभ फलों में कमी तथा शुभ फलों की प्राप्ति होती है ।
यदि कोई बच्चा अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में जन्मा हैं तो उसके लिए गणेश जी का पूजन करना चाहिए ।
इस नक्षत्र में जन्में बच्चे के लिए माह के किसी भी एक गुरुवार या बुधवार को हरे रंग के वस्त्र, लहसुनिया आदि वस्तु का दान करना उत्तम रहता है।
किसी मंदिर में झंडा फहराने से भी लाभ मिलता है ।
यदि कोई बच्चा आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में जन्मा हैं तो आपके लिए बुध का पूजन करना फलदायी रहता है ।
इस नक्षत्र में जन्में बच्चे के लिए माह के किसी भी एक बुधवार को हरी सब्जी, हरा धनिया, आँवले, पन्ना, कांसे के बर्तन, आदि वस्तुओं का दान करना विशेष फलदायी माना गया है।
ज्योतिषशास्त्र के मत अनुसार वैशाख, ज्येष्ठ, मार्गशीर्ष अथवा अगहन एवं फाल्गुन मॉस में मूल का वास पाताल में होता है।
इसी प्रकार आषाढ़, आश्विन, भाद्रपद और माघ मॉस में मूल का वास स्वर्ग में होता है एवं चैत्र, श्रावण, कार्तिक व पौष मॉस में मूल का वास भूमि पर रहता है।
बहुत सारे आचार्यों का मत है जब मूल नक्षत्र पृथ्वी पर हो तभी ज्यादा कष्टकारी होता है।
अब अभुक्त मूल नक्षत्र पर चर्चा करूँगा।
अभुक्त मूल विचार।
ज्येष्ठा नक्षत्र के अन्त की आधी घड़ी तथा मूल नक्षत्र की प्रारम्भ की आधी घड़ी,एक घड़ी अर्थात 24 मिनट का निरंतर समय अभुक्त मूल कहलाता है।
कुछ ज्योतिषाचार्यों के मतानुसार दोनों नक्षत्रों की 4 - 4 घडि़याँ इसी प्रकार से अभुक्त कहलाती है।
वस्तुतः आधी घड़ी वाला मत ही ज्यादा प्रमाणिक बताया गया है।
इस समय में उत्पन्न होने पर गण्ड नक्षत्र का फल सम्बंधित जातक पर विशेष रूप से प्रभाव दिखाता है।
शास्त्रों में इस काल मे जन्म लेने वाले जातकों का परित्याग तक करने की सलाह दिया गया है।
परंतु ये न्यायसंगत और अमानवीय कृत्य है।
अतः इस समय में जन्मे जातक का विधि विधान पूर्वक पूजन हवनादि से शान्ति करा लेने के 27 दिन पश्चात ही पिता मुख देखे।
गेास्वामी तुलसी दास अभुक्त घडि़यों में उत्पन्न हुए थे, अतः उनके पिता ने उन्हें त्याग दिया था।.
મહા કુંભની શરૂઆત, સ્નાન કરવાથી જીવનમાં આવશે સુખ-સમૃદ્ધિ, જાણો :
હિંદુ ધર્મમાં મહાકુંભનું ઘણું મહત્વ છે.
વિશ્વનો સૌથી મોટો ધાર્મિક મેળો મહાકુંભ 2025માં 13 જાન્યુઆરીથી શરૂ થવા જઈ રહ્યો છે.
આ મેળો ઉત્તર પ્રદેશના પ્રયાગરાજ જિલ્લામાં 45 દિવસ સુધી ચાલશે અને મહાશિવરાત્રીના દિવસે 26 ફેબ્રુઆરીએ પૂરો થશે.
આ મેળાનું આયોજન દર 12 વર્ષના અંતરાલમાં કરવામાં આવે છે.
આ મેળામાં માત્ર ભારતના જ લોકો નહીં પરંતુ વિદેશથી પણ શ્રદ્ધાળુઓ પવિત્ર સંગમ નદીમાં ડુબકી લગાવવા માટે આવે છે.
આ વખતે મહાકુંભમાં કુલ 6 શાહી સ્નાન તિથિઓ પડી રહી છે.
જ્યોતિષ શાસ્ત્ર અનુસાર પહેલા શાહી સ્નાનના દિવસે શુભ સંયોગ બની રહ્યા છે.
આવી સ્થિતિમાં ચાલો જાણીએ કે મેળાના પ્રથમ દિવસે શું ખાસ છે,
તેમજ શાહી સ્નાનની તારીખો પણ જાણીએ.
શાહી સ્નાનના તારીખો:
- પ્રથમ શાહી સ્નાન – 13 જાન્યુઆરી 2025 – મકરસંક્રાંતિ
- બીજુ શાહી સ્નાન – 29 જાન્યુઆરી 2025 – મૌની અમાવસ્યા
- ત્રીજું શાહી સ્નાન – 3 ફેબ્રુઆરી 2025 – વસંત પંચમી
- ચોથું શાહી સ્નાન – 12 ફેબ્રુઆરી 2025 – માઘ પૂર્ણિમા
- પાંચમું શાહી સ્નાન – 26 ફેબ્રુઆરી 2025 – મહાશિવરાત્રી
પ્રથમ દિવસે શુભ સંયોગ:
મહાકુંભનું પ્રથમ શાહી સ્નાન 13 જાન્યુઆરી 2025 રોજ પૌષ પૂર્ણિમાએ થશે.
જ્યોતિષ શાસ્ત્ર અનુસાર પહેલા શાહી સ્નાન પર રવિ યોગનો વિશેષ સંયોગ બની રહ્યો છે.
હિન્દુ ધર્મમાં આ યોગને ખૂબ જ શુભ માનવામાં આવે છે.
માન્યતા છે કે આ દિવસે સ્નાન કરવાથી જીવનના બધા પાપ ધોવાઈ જાય છે.
આ સાથે જ ઘરમાં સુખ-શાંતિ પણ રહે છે.
હિન્દુ કેલેન્ડર મુજબ રવિ યોગ 13 જાન્યુઆરીએ સવારે 7.15થી 10.38 વાગ્યા સુધી રહેશે.
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏