सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। जन्म कुंडली मे कारक ग्रह ।।
जन्म कुंडली मे कारक ग्रह
प्रत्येक कुंडली में कोई न कोई ऐसा ग्रह अवश्य होता है जो जातक के जीवन का आधार होता है और उसे जीवन में हर प्रकार की सहायता करता है और कुंडली में अन्य ग्रह जो उसे दुस्प्रभाव दे रहे हो उनसे उसकी रक्षा करता है।
जब भी हम कोई कुंडली देखते है तो हमारा मुख्य रूप से ध्यान इस बात पर होना आवश्यक है की ऐसे कौन से ग्रह है जिनको मजबूत करके जातक को जीवन में आगे ले जाया जा सकता है।
प्रत्येक कुंडली में कुछ शुभ ग्रह होते है जो की आपको शुभ फल देने वाले होते है इन्हे जन्म कुंडली के कारक ग्रह कहते है।
कारक ग्रह वे ग्रह होते है जो जिस भी स्थान से बैठते है और जिस भाव को भी देखते है उस भाव के फलों में वृद्धि करते है|
जैसे की किसी कुंडली के चोथे भाव में उस कुंडली का कारक ग्रह विराजमान है तो वो ग्रह अपनी दशा अन्तर्दशा में चोथे भाव से जुड़े हुवे फल जैसे की भूमि मकान वाहन मानसिक शांति ग्रहस्थ सुख में वृद्धि करेगा|
इसी तरह यदि भाग्य भाव यानी नोवें भाव में विराजमान है तो भाग्य दान धर्म पुण्य से जुड़े हुए कार्यों में वृद्धि करेगा|
किसी भी कुंडली में जो लग्न का स्वामी होता है वो उस कुंडली का सबसे प्रबल कारक ग्रह होता है|
उसके बाद त्रिकोण भाव यानी पांचवें और नोवें भाव में स्थित राशि के स्वामी उस कुंडली के कारक ग्रह होते है|
इसका एक मुख्य कारण है की इन दोनों भावों के स्वामी हमेशा लग्नेश के मित्र होते है और इन भावों में स्थित राशि हमेशा लग्न में स्तिथ राशि के तत्व जैसी होती है जैसे की लग्न में जल तत्व राशि होगी तो इन दोनों भावों में भी जल तत्व राशि होगी|
यानी की कुंडली में लग्न पंचम और नवम भाव के स्वामी मुख्य कारक होते है क्योंकि ये तीनो मुख्य रूप से हमारे जीवन के आधार को दर्शाते है जैसे लग्न से पूरा शरीर तो पंचम से विद्या बुद्धि संतान ईस्ट तो नवम भाव से भाग्य धर्म कर्म पूर्वज आदि |
यदि इन तीनो भावों के शुभ फल जातक को मिल जाते है तो अन्य भावों के शुभ फल अपने आप मिल जाते है|
यही कारण है की मुख्य रूप से इन तीनो से संबंधित रत्न अधिकतर जातक को पहनाने का चलन है|
इसके बाद केंद्र के ग्रह यानी चोथे सातवें और दसवें भाव के ग्रह कारक होते है लेकिन चूँकि ये लग्नेश के शत्रु भी हो सकते है इसलिए इनकी कारकत्व कुंडली में इनकी स्तिथि पर निर्भर करता है|
अब सूर्य चन्द्र को छोड़कर सभी ग्रहों की दो राशि होती है ऐसे में उनकी एक राशि केंद्र या त्रिकोण में होकर दूसरी अशुभ भावों जैसे की 3 6 8 12 में हो सकती है ऐसे में उस ग्रह की मूल त्रिकोण राशि जिस भाव में होती है उस से संबंधित अधिकतर फल जातक को मिलते है या फिर इन दोनों राशि में से यदि किसी राशी में वो ग्रह स्वयं उस भाव में स्थित हो तो उसका फल जातक को मिलता है| साथ ही यदि कोई ग्रह कारक होकर किसी अशुभ भाव का स्वामी है तो यदि वो केंद्र या त्रिकोण भावों में स्तिथ हो तो उसके शुभ भाव के फल ज्यादा मिलते है दुसरे अशुभ भाव के फल जातक को कम मिलते है|
किसी भी कारक ग्रह के फल का अध्ययन करते समय हमे इस भाव का ध्यान अवस्य रखना चाहिए की वो यदि अपनी उच्च राशि मूलत्रिकोण राशि या खुद की राशि में होगा तो उसके सम्पूर्ण शुभ फल जातक को मिलेंगे यदि वो शत्रु राशि या नीच की राशि में हुआ तो उसके शुभ फल में बिलकुल न्यूनता आ जायेगी यदि नीच भंग न हुआ तो|
साथ ही ये भी देखना जरूरी है की कारक ग्रह कुंडली के किस भाव में है जैसे यदि त्रिक भाव में हुआ तो इन wभावों से संबंधित फल में वृद्धि कर देगा जैसे छटे भाव में हुआ तो ऋण रोग शत्रु में वृद्धि करेगा|
वैसे फल बहुत सी अन्य बातों पर भी निर्भर करता है।
जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏