|| 🔴 होलाष्टक 🔴 ||
होली 2025 पर छाया चंद्र ग्रहण का साया :
होली पर छाएगा ग्रहण का साया, राशि अनुसार इन उपायों से करें नकारात्मकता को दूर!
07 मार्च, शुक्रवार से लेकर होली दहन तक होलाष्टक के दिन रहेंगे।
होली 2025 का पर्व धार्मिक, सांस्कृतिक और वैदिक ज्योतिषीय दृष्टि से विशेष महत्व रखता है जो कि प्रतिपदा तिथि के दिन मनाया जाता है।
बसंत माह के शुरू होने के साथ ही सबको होली का बेसब्री से इंतजार रहता है।
होली का त्योहार दो दिन मनाया जाता है और इसके पहले दिन होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों वाली होली खेली जाती है।
हिंदू धर्म में होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।
भारत समेत दुनियाभर में इसकी अलग ही रौनक और उत्साह देखने को मिलता है।
आपसी प्रेम और ख़ुशियों का पर्व है होली इसलिए इस अवसर पर लोग एक - दूसरे को रंग लगाकर अपने पुराने गिले - शिकवे भूला देते हैं।
होली पर घरों में कई तरह के पकवान, ठंडाई और गुझिया आदि बनाई जाती हैं।
लोग एक - दूसरे को रंग - गुलाल लगाकर होली का जश्न मनाते हैं और होली की शुभकामनाएं देते हैं।
होलाष्टक का अर्थ :
वसंतोत्सव के रूप में होली को प्रति वर्ष प्रतिपदा तिथि पर मनाया जाता है।
सामान्य शब्दों में कहें तो, यह पर्व वसंत ऋतु के आगमन और सर्दियों के अंत का प्रतीक है।
हालांकि, इस साल होली 2025 पर चंद्र ग्रहण का साया रहेगा।
एस्ट्रोसेज पंडारामा प्रभु राज्यगुरु के होली 2025 स्पेशल इस ब्लॉग में हम होली कब है और क्या है !
इसका शुभ मुहूर्त?
इसका अलावा, क्या चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा या नहीं ?
होली पर राशि अनुसार किये जाने वाले उपायों के बारे में आपको विस्तार से बताएंगे।
तो आइए बिना देर किए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं होली 2025 के बारे में सब कुछ।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि, होलाष्टक के इन आठ दिनों में वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है।
यही वजह है कि इस दौरान किसी भी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।
इन दिनों में ग्रहों का भी होता है, उग्र प्रभाव :
इसके अलावा ज्योतिष मान्यता के अनुसार कहा जाता है की होलाष्टक के दिनों में अष्टमी तिथि के दिन चंद्रमा, नवमी तिथि के दिन सूर्य, दशमी तिथि के दिन शनि, एकादशी तिथि के दिन शुक्र, द्वादशी तिथि के दिन गुरु, त्रयोदशी तिथि के दिन बुध, चतुर्दशी तिथि के दिन मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र अवस्था में रहते हैं।
ऐसे में इस दौरान अगर कोई भी मांगलिक कार्य किया जाए तो इससे व्यक्ति के जीवन में तमाम तरह की परेशानियां, बाधाएँ, रुकावटें और समस्या आने की आशंका बढ़ जाती है।
ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार ग्रहों के स्वभाव में उग्रता आने के चलते इस दौरान अगर कोई व्यक्ति शुभ कार्य करता भी है या ऐसा कोई फैसला लेता भी है !
तो वह शांत मन से नहीं ले पाता है और यही वजह है कि उनके द्वारा लिए गए फैसले अक्सर गलत साबित होते हैं या उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है।
होली 2025 के तिथि और मूहर्त :
संदेश और जन्मभूमि पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होली का त्योहार मनाया जाता है।
इसके पहले दिन को धुलण्डी या होलिका दहन के रूप में मनाया जाता है।
आइ ए नज़र डालते हैं अब वर्ष 2025 में होली की तिथि और इसके शुभ मुहूर्त पर।
होली 2025 तिथि: 14 मार्च 2025, शुक्रवार पूर्णिमा तिथि का आरंभ: 13 मार्च 2025 को सुबह 10 बजकर 38 मिनट से, पूर्णिमा तिथि का समाप्त: 14 मार्च 2025 को दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक।
ज्योतिषीय सिद्धांत :
ज्योतिष के अनुसार माना जाता है कि होलाष्टक की इस समयावधि में उन जातकों को विशेष रूप से सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है!
जिनकी जन्म कुंडली में चंद्रमा कमजोर होता हैं !
चंद्रमा किसी अशुभ योग में व अशुभ प्रभाव में हो या फिर चंद्रमा छठे, आठवें, बारहवें भाव में होता हैं।
होली 2025 पर छाया चंद्र ग्रहण का साया :
पिछले साल की तरह यानी कि साल 2024 की तरह ही इस वर्ष भी होली पर चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है।
होली पर चंद्र ग्रहण लगने से लोगों के मन में इस पर्व को मनाने को लेकर संदेह पैदा हो रहा है, तो बता दें कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि अर्थात 14 मार्च, 2025 को चंद्र ग्रहण लगेगा।
इस ग्रहण का आरंभ सुबह 10 बजकर 41 मिनट पर होगा और इसका अंत दोपहर 02 बजकर 18 मिनट पर होगा।
इस ग्रहण को दुनिया के विभिन्न देशों जैसे कि अधिकांश ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, अधिकांश अफ्रीका, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक आर्कटिक महासागर, पूर्वी एशिया आदि में देखा जा सकेगा।
हालांकि, साल 2025 का पहला चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा।
नोट: चंद्र ग्रहण 2025 भारत में दृश्यमान नहीं होगा इसलिए सूतक काल मान्य नहीं होगा।
ऐसे में, होली का पर्व देश में धूमधाम से मनाया जा सकता है।
अब हम आगे बढ़ते हैं और जान लेते हैं होली से संबंधित परम्पराओं के बारे में।
होली और इसका इतिहास :
समय के साथ होली को मनाने के तरीके में भी बदलाव आया है और हर दौर के साथ इसका जश्न मनाने का रूप भी बदला है।
लेकिन, सबसे प्राचीन त्योहार होने के नाते होली को भिन्न - भिन्न नामों से जाना जाता है और इसके साथ कई परंपराएं जुड़ीं हैं।
आर्यों की होलका :
प्राचीन समय में होली को होलका कहा जाता था और इस अवसर पर आर्यों द्वारा नवात्रैष्टि यज्ञ किया जाता था।
होली के दिन होलका नाम अन्न से हवन करने के पश्चात उसका प्रसाद लेने की परंपरा थी।
होलका खेत में पड़ा हुआ आधा कच्चा और आधा पका अन्न होता है इस लिए इस त्योहार को होलिका उत्सव के नाम से भी जाना गया।
साथ ही, उस समय नई फसल का कुछ हिस्सा देवी - देवताओं को अर्पित किया जाता है।
सिर्फ इतना ही नहीं, सिंधु घाटी सभ्यता में भी होली और दिवाली को मनाया जाता था।
होलिका दहन :
वैदिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, होलिका दहन के दिन असुर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रहलाद का अहित करने के भाव से उसे गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई थी और स्वयं जलकर भस्म हो गई थी।
इसी के प्रतीक के रूप में होलिका दहन किया जाता है जो कि होली का प्रथम दिन होता है।
महादेव ने किया था कामदेव को भस्म :
होली के पर्व से अनेक कथाएं जुड़ी हैं और इसी में से एक है कामदेव की कथा।
कहते हैं कि होली के दिन भगवान शिव ने कामदेव को क्रोधवश भस्म कर दिया था और उसके बाद उन्हें पुनर्जीवित किया था।
एक अन्य मान्यता है कि होली के अवसर पर राजा पृथु ने अपने राज्य के बच्चों लो सुरक्षा के लिए राक्षसी ढुंढी का लकड़ी में आग जलाकर उसका वध किया था।
इन दोनों वजहों से ही होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ के नाम से जाना जाता है।
होलाष्टक व धार्मिक मान्यताएं :
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक के 8 दिन वह दिन होते हैं जब हिरनकश्य ने भक्त प्रहलाद को 8 दिनों तक कठोर यातनाएं दी थी।
इस लिए इन दिनों में किसी भी तरह के मांगलिक कार्य शुभ नहीं माने जाते।
फाग उत्सव :
कहते हैं कि त्रेतायुग के आरंभ में भगवान विष्णु ने धूलि वंदन किया था और उस दिन से ही धुलेंडी का पर्व मनाया जाता है।
होलिका दहन के बाद ‘ रंग उत्सव ’ मनाने की परंपरा द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने शुरू की थी और उस समय से ही फागुन माह में मनाए जाने के कारण होली को “ फगवाह ” के नाम से भी पुकारा जाने लगा।
मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने राधा रानी पर रंग डाला था और तब से ही रंग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है।
होली के पर्व में रंग को जोड़ने का श्रेय श्रीकृष्ण को ही जाता है।
प्राचीन चित्रों में होली का वर्णन :
यदि हम प्राचीन काल में निर्मित भारत के मंदिरों की दीवारों को देखे थे।
तो होली उत्सव को वर्णित करते हुए हमें अनेक चित्र या विभिन्न मूर्तियां मिल जाएंगी।
इसी क्रम में, 16 वीं सदी में विजयनगर की राजधानी हंपी में बनाया गया एक मंदिर, अहमदनगर चित्रों और मेवाड़ के चित्रों में भी होली उत्सव का चित्रण किया गया है।
होली 2025 से जुड़ी पौराणिक कथा :
धर्म ग्रंथों में होली से संबंधित अनेक कथाओं का वर्णन मिलता है जिनके बारे में हम विस्तार से चर्चा करेंगे।
द्वापर युग में राधा - कृष्ण की होली :
होली के त्योहार को हमेशा से भगवान कृष्ण और राधा रानी से जोड़ा जाता है जो कि इनके अटूट प्रेम को दर्शाता है।
वैदिक शास्त्रों के अनुसार, द्वापर युग में श्रीकृष्ण और राधा जी की बरसाने में खेली गई होली को ही होली उत्सव की शुरुआत माना जाता है।
इस परंपरा का पालन करते हुए आज भी बरसाने और नंदगाव में लट्ठमार होली खेली जाती है जो कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
भक्त प्रहलाद की भक्ति की कथा :
धर्म ग्रंथों में होली की कथा का संबंध भक्त प्रह्लाद से भी माना गया है और इस कथा के अनुसार, भक्त प्रहलाद का जन्म राक्षस कुल में हुआ था।
लेकिन उनका मन बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्ति में लगता था और समय के साथ वह उनके बड़े भक्त बन गए थे।
प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप राक्षस कुल के राजा था और अत्यंत शक्तिशाली थे।
हिरण्यकश्यप को अपने बेटे की विष्णु भक्ति बिल्कुल पसंद नहीं थी और उनकी भक्ति देखकर बहुत ही क्रोधित होते थे।
इस वजह से हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद पर अनेक प्रकार के अत्याचार किए।
प्रहलाद की बुआ और हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को ऐसा वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में भस्म नहीं हो सकती।
हिरण्यकश्यप के कहने पर होलिका प्रहलाद को मारने की मंशा से अपनी गोद में लेकर आग में बैठ गई ताकि प्रहलाद का वध किया जा सके।
लेकिन, भगवान विष्णु के आशीर्वाद से होलिका उस अग्नि में जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद बच गया, उस दिन से होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
शिव - गौरी की कथा :
होली के संबंध में एक कथा का वर्णन शिवपुराण में भी मिलता है और इस कथा के अनुसार, पर्वतराज हिमालय की पुत्री माता पार्वती भगवान शंकर से विवाह के लिए कठोर तपस्या में लीन थी।
इंद्र देव चाहते थे कि देवी पार्वती और भगवान शिव का विवाह हो जाए क्योंकि ताड़कासुर नमक राक्षस का वध केवल शिव - पार्वती का पुत्र ही कर सकता था इस लिए इंद्रदेव और सभी देवों - देवताओं ने कामदेव को भगवान शिव की तपस्या भंग करने का काम सौंपा था।
महादेव को तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव ने भगवान शिव पर अपने ‘ पुष्प ’ वाण से प्रहार किया था।
वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार :
फाल्गुन शुक्ल पक्ष के दौरान मौसम परिवर्तन हो जाता है और जिससे बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है।
इस लिए इस समय अधिक सावधानी रखना बताया गया है।
होली से जुड़ी ये परंपराएं कर देंगी आपको हैरान :
शादी की रजामंदी :
मध्यप्रदेश में एक समुदाय में लड़के अपनी पसंद की लड़की से शादी की मंजूरी लेने के लिए मांदल नामक वाद्य यंत्र बजाते हैं और नाचते हुए लड़की को गुलाल लगा देते हैं।
लड़की की रजामंदी होने पर वह भी लड़की को गुलाल लगा देती है।
पत्थर मार होली :
राजस्थान के बांसवाड़ा और डूंगरपुर में आदिवासी समुदाय के पत्थर फेंक कर होली खेलने की परंपरा है।
यह समुदाय एक - दूसरे से पत्थर मार होली खेलते हैं।
इस दौरान किसी को चोट लगना शुभ माना जाता है।
अंगारों से होली :
जहां रंगों और फूलों से होली खेली जाती है, तो वहीं मध्यप्रदेश के मालवा में होली पर जलते हुए अंगारे एक - दूसरे पर फेंके जाते हैं।
मान्यता है कि अंगारों से होली खेलने से होलिका राक्षसी का नाश हो जाता है।
होली पर जरूर बरतें ये सावधानियां !
त्वचा की करें देखभाल :
होली पर रंगों की होली खेलने से पहले अपनी त्वचा पर तेल, घी, मलाई या कोई तैलीय क्रीम अवश्य लगाएं ताकि त्वचा पर बुरा असर न पड़े।
बालों की सुरक्षा :
रंग से बालों को सुरक्षित रखने के लिए अपने बालों पर भी अच्छे से तेल लगा लें क्योंकि रंग आपके बालों को रूखा और कमजोर बना सकते हैं।
आँखों को रखें ध्यान :
होली पर रंग खेलते समय अगर आंखों में रंग चला जाए, तो आँखों को तुरंत पानी से धोएं।
ज्यादा समस्या होने पर बिना देर किए डॉक्टर को दिखाएं।
ज्यादा समस्या होने पर बिना देर किए डॉक्टर को दिखाएं।
हर्बल रंग का करें प्रयोग :
होली पर केमिकल युक्त रंगों के बजाय हर्बल और ऑर्गेनिक रंगों का इस्तेमाल करें जिससे आप बिना किसी परेशानी के होली का आनंद ले सकें।
होलाष्टक के दिनों में क्या करना चाहिए :
होली 2025 पर राशि अनुसार करें ये उपाय, धन - समृद्धि में होगी वृद्धि !
जिस तरह से भक्त प्रहलाद ने भगवान विष्णु की उपासना - जप - स्तुति इत्यादि करते हुए भगवान श्री विष्णु की भक्ति व आशीर्वाद के अधिकारी बने थे और भगवान ने प्रहलाद के सभी कष्टों का निवारण किया था।
इसी तरह होलाष्टक के इन दिनों में सभी उपासकों को भगवान की उपासना - स्तुति - नाम जप - मंत्र जप - कथा श्रवण इत्यादि करना चाहिए।।
मकर राशि :
मकर राशि के जातक होली के अवसर पर स्नान करने के पश्चात पीपल के पेड़ पर तिकोना सफेद रंग का कपड़े से बना झंडा लगाएं।
कुंभ राशि :
कुंभ राशि वालों के लिए होली के दिन शाम के समय पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाना शुभ रहेगा और इसके बाद, भगवान से प्रार्थना करें।
मीन राशि :
मीन राशि के जातकों को होली 2025 पर घी और इत्र का पवित्र स्थानों पर दान करना चाहिए।
साथ ही, गाय की सेवा करें क्योंकि ऐसा करने से आपके सौभाग्य में वृद्धि होगी।
ज्योतिषी पंडारामा प्रभु राज्यगुरु 🕉 ऑन लाइन / ऑफ लाइन ज्योतिषी
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