google() // Google's Maven repository https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 1. आध्यात्मिकता के नशा की संगत और ज्योतिष : श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार खगोलीय गणित https://sarswatijyotish.com

amazon.in

https://www.amazon.in/HP-I7-13620H-15-6-Inch-Response-Fa1332Tx/dp/B0D2DHNKFB?pf_rd_r=BTMHJYAHM521RQHA6APN&pf_rd_p=c22a6ff6-1b2d-4729-bc0f-967ee460964a&linkCode=ll1&tag=blogger0a94-21&linkId=5fb9faae48680855ba5f1e86664d9bf9&language=en_IN&ref_=as_li_ss_tl
લેબલ श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार खगोलीय गणित https://sarswatijyotish.com સાથે પોસ્ટ્સ બતાવી રહ્યું છે. બધી પોસ્ટ્સ બતાવો
લેબલ श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार खगोलीय गणित https://sarswatijyotish.com સાથે પોસ્ટ્સ બતાવી રહ્યું છે. બધી પોસ્ટ્સ બતાવો

।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार खगोलीय गणित एवं पंचांग की उपयोगिता ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार खगोलीय गणित एवं पंचांग की उपयोगिता ।।


श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार खगोलीय गणित एवं पंचांग की उपयोगिता 


भारतीय पंचांग का आधार विक्रम संवत है जिसका सम्बंध राजा विक्रमादित्य के शासन काल से है।

ये कैलेंडर विक्रमादित्य के शासनकाल में जारी हुआ था।

इसी कारण इसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है। 


My Dream Carts Golden Om Round Decorative Wall Art Mdf Wooden Om Chakra For Temple, Living Room, Bedroom, Office, Hotel, Home Decor Items, Gift Item, Mandala Wall Hanging For House Decoration 15x15cm

Visit the My Dream Carts Storehttps://www.amazon.com/dp/B0C6V8ZQMT?ie=UTF8&pd_rd_plhdr=t&aref=PYGoTiqS2w&th=1&linkCode=ll1&tag=bloggerprabhu-20&linkId=3a4e1a51cc9fc3ff4b237b5b97c93ec7&language=en_US&ref_=as_li_ss_tl

यजुर्वेद और ऋग्वेद में पंचांग के महत्व और पंचांग की खगोलीय गणित के आधारित सचोटता दर्शाया गया है  पंचांग पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं:-

1:- तिथि (Tithi) 

2:- वार (Day) 

3:-नक्षत्र(Nakshatra) 

4:- योग (Yog) 

5:- करण (Karan) ।


चन्द्रमा की एक कला को एक तिथि माना जाता है जो उन्नीस घंटे से 24 घंटे तक की होती है । 

अमावस्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियों को शुक्लपक्ष और पूर्णिमा से अमावस्या तक की तिथियों को कृष्ण पक्ष कहते हैं।

तिथियाँ इस प्रकार होती है :-

1. प्रतिपदा, 
2. द्वितीय , 
3. तृतीया, 
4. चतुर्थी, 
5. पँचमी, 
6. षष्टी, 
7. सप्तमी, 
8. अष्टमी, 
9. नवमी, 
10. दशमी, 
11. एकादशी, 
12. द्वादशी, 
13. त्रियोदशी, 
14. चतुर्दशी, 
15. पूर्णिमा एवं 30. अमावस्या

तिथियों के प्रकार : – 

1-6-11 नंदा, 
2-7-12 भद्रा, 
3-8-13 जया, 
4-9-14 रिक्ता 
5-10-15 पूर्णा तथा 4-6-8-9-12-14 तिथियाँ पक्षरंध्र संज्ञक हैं ।

मुख्य रूप से तिथियाँ 5 प्रकार की होती है ।

' नन्दा तिथियाँ  ' – दोनों पक्षों की 1 , 6 और 11 तिथि अर्थात प्रतिपदा, षष्ठी व एकादशी तिथियाँ नन्दा तिथि कहलाती हैं । 

' भद्रा तिथियाँ ' – दोनों पक्षों की 2, 7, और 12 तिथि अर्थात द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी तिथियाँ भद्रा तिथि कहलाती है । 

' जया तिथि ' – दोनों पक्षों की 3 , 8 और 13 तिथि अर्थात तृतीया, अष्टमी व त्रयोदशी तिथियाँ जया तिथि कहलाती है । 

यह तिथियाँ विद्या, कला जैसे गायन, वादन नृत्य आदि कलात्मक कार्यों के लिए उत्तम मानी जाती है ।

' रिक्ता तिथि ' – दोनों पक्षों की 4 , 9, और 14 तिथि अर्थात चतुर्थी, नवमी व चतुर्दशी तिथियाँ रिक्त तिथियाँ कहलाती है । 

' पूर्णा तिथियाँ ' – दोनों पक्षों की 5, 10 , 15 , तिथि अर्थात पंचमी, दशमी और पूर्णिमा और अमावस
पूर्णा तिथि कहलाती हैं । 

' वार ' 
एक सप्ताह में 7 दिन या 7 वार होते है । 


सोमवार, 
मंगलवार, 
बुधवार, 
बृहस्पतिवार ( गुरुवार ),
शुक्रवार, 
शनिवार 
रविवार ( इतवार )। 

इन सभी वारो के अलग अलग देवता और ग्रह होते है जिनका इन वारो पर स्पष्ट रूप से प्रभाव होता है ।

' नक्षत्र '  हमारे आकाश के तारामंडल में अलग अलग रूप में दिखाई देने वाले आकार नक्षत्र कहलाते है । 

नक्षत्र 27 प्रकार के माने जाते है । 

ज्योतिषियों में अभिजीत नक्षत्र को 28 वां नक्षत्र माना है । 

नक्षत्रों को उनके स्वभाव के आधार पर 7 श्रेणियों ध्रुव, चंचल, उग्र, मिश्र, क्षिप्रा, मृदु और तीक्ष्ण में बाँटा गया है । 

चन्द्रमा इन सभी नक्षत्रो में भृमण करता रहता है ।


My Dream Carts Golden Om Round Decorative Wall Art Mdf Wooden Om Chakra For Temple, Living Room, Bedroom, Office, Hotel, Home Decor Items, Gift Item, Mandala Wall Hanging For House Decoration 15x15cm

Visit the My Dream Carts Storehttps://www.amazon.com/dp/B0C6V8ZQMT?ie=UTF8&pd_rd_plhdr=t&aref=PYGoTiqS2w&th=1&linkCode=ll1&tag=bloggerprabhu-20&linkId=3a4e1a51cc9fc3ff4b237b5b97c93ec7&language=en_US&ref_=as_li_ss_tl

नक्षत्रो के नाम :-  

1.अश्विनी, 

2. भरणी, 

3. कृत्तिका, 

4. रोहिणी, 

5. मॄगशिरा, 

6. आद्रा, 

7. पुनर्वसु, 

8. पुष्य, 

9. अश्लेशा, 

10. मघा, 

11. पूर्वाफाल्गुनी, 

12. उत्तराफाल्गुनी, 

13. हस्त, 

14. चित्रा, 

15. स्वाति, 

16. विशाखा, 

17. अनुराधा, 

18. ज्येष्ठा, 

19. मूल, 

20. पूर्वाषाढा, 

21. उत्तराषाढा, 

22. श्रवण, 

23. धनिष्ठा, 

24. शतभिषा, 

25. पूर्वाभाद्रपद, 

26. उत्तराभाद्रपद 

27. रेवती।

नक्षत्रों का स्वभाव :-

नक्षत्रों को उनके स्वभाव के आधार पर 7 श्रेणियों ध्रुव, चंचल, उग्र, मिश्र, क्षिप्रा, मृदु और तीक्ष्ण में बाँटा गया है । 

नक्षत्रों की शुभाशुभ फल के आधार पर तीन श्रेणी होती हैं । 


योग*👉 ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 27 योग कहे गए है । 

सूर्य और चन्द्रमा की विशेष दूरियों की स्थितियों से योग बनते है । 

जब सूर्य और चन्द्रमा की गति में 13º-20' का अन्तर पड्ता है तो एक योग बनता है। 


दूरियों के आधार पर बनने वाले *योगों के नाम* निम्नलिखित है,

1. विष्कुम्भ (Biswakumva),

2. प्रीति (Priti), 

3. आयुष्मान(Ayushsman), 

4. सौभाग्य (Soubhagya), 

5. शोभन (Shobhan), 

6. अतिगड (Atigad), 

7. सुकर्मा (Sukarma), 

8. घृति (Ghruti), 

9. शूल (Shula), 

10. गंड (Ganda), 

11. वृद्धि (Bridhi), 

12. ध्रुव (Dhrub), 

13. व्याघात (Byaghat), 

14. हर्षण (Harshan), 

15. वज्र (Bajra), 

16. सिद्धि (Sidhhi), 

17. व्यतीपात (Biytpat), 

18. वरीयान (Bariyan), 

19. परिध (paridhi), 

20. शिव (Shiba), 

21. सिद्ध (Sidhha), 

22. साध्य (Sadhya), 

23. शुभ (Shuva), 

24. शुक्ल (Shukla), 

25. ब्रह्म (Brahma), 

26. ऎन्द्र (Indra), 

27. वैधृति (Baidhruti)

करण :-  

एक तिथि में दो करण होते हैं....!

एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। 

कुल 11 करण होते हैं....!

बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। 



समें विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। 

महीनो के नाम :-

भारतीय पंचांग के अनुसार हिन्दु कैलेण्डर में 12 माह होते है जिनके नाम आकाशमण्डल के नक्षत्रों में से 12 नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं। 

जिस मास की पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के नाम पर उस मास का नाम रखा गया है।

चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास ( मार्च - अप्रैल )

विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास ( अप्रैल - मई )

ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर ज्येष्ठ मास ( मई - जून )

आषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास ( जून - जुलाई )

श्रवण नक्षत्र के नाम पर श्रावण मास ( जुलाई - अगस्त )

भाद्रपद ( भाद्रा ) नक्षत्र के नाम पर भाद्रपद मास ( अगस्त - सितम्बर )

अश्विनी के नाम पर आश्विन मास ( सितम्बर - अक्तूबर )

कृत्तिका के नाम पर कार्तिक मास ( अक्तूबर - नवम्बर )

मृगशीर्ष के नाम पर मार्गशीर्ष ( नवम्बर - दिसम्बर )

पुष्य के नाम पर पौष ( दिसम्बर - जनवरी )

मघा के नाम पर माघ ( जनवरी -फरवरी ) तथा

फाल्गुनी नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन मास ( फरवरी - मार्च ) का नामकरण हुआ है।
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

सोम प्रदोष व्रत , मासिक कालाष्टमी नियम एवं विधि :

सोम प्रदोष व्रत , मासिक कालाष्टमी नियम एवं विधि : सोम प्रदोष व्रत  हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का बड़ा महत्व है।  यह व्रत भगवान शिव को स...