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।। जन्म कुंडली मे शनि दोष ग्रह दोष में पीपल की पूजन का महत्व ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।।  जन्म कुंडली मे शनि दोष ग्रह दोष में पीपल की पूजन का महत्व ।।


*शनि का नाम शनैश्चर क्यों ?*
*पीपल वृक्ष की  पूजा क्यों ?*

महर्षि दधीचि का नाम कौन नहीं जानता है ? 



महर्षि दधीचि द्वारा देह दान की कथा किसने नहीं सुनी या पढ़ी होगी ? 

किन्तु क्या आप जानते हैं कि जब महर्षि ने अपनी देह दान दिया था तो उनकी उम्र कितनी थी या उनकी पत्नी की उम्र कितने वर्ष थी और उनके कोई संतान थी या नहीं ?

यदि नहीं तो आइए पुराणों से छानकर प्रस्तुत एक बेहद त्याग और तपभरी कथा का अनुश्रवण करें-
   
       देवासुर संग्राम में असुरों के नायक वृत्तासुर के आगे असहाय देवों को जब ज्ञात हुआ कि यदि महर्षि दधीचि की अस्थियों का अस्त्र ( वज्र )  बनाकर असुरराज पर प्रहार किया जाएगा तो उसका विनाश तय है तब देवेंद्र स्वयम् महर्षि दधीचि के सम्मुख देह दान करने की याचना लेकर गए। 



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उस समय महर्षि दधीचि की उम्र मात्र 31 वर्ष और उनकी धर्मपत्नी की उम्र 27 वर्ष तथा गोद में नवजात बच्चे की उम्र मात्र 3 वर्ष थी। 

देवेंद्र इन्द्र की याचना और देवताओं पर आए संकट के निवारण हेतु महर्षि दधीचि देह दान हेतु तैयार हो गए तथा अपने प्राण योगबल से त्याग दिए।

देवताओं ने उनकी अस्थियां निकाल कर मांसपिंड को उनकी पत्नी को दाह हेतु दे दिया।

  श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं। 

इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।

जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों ( फल ) को खाकर बड़ा होने लगा। 

कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक कि जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।

  एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। 

नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा-

नारद- बालक तुम कौन हो ?






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बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।

नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ?

बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ ।

   तब नारद ने ध्यान धर देखा।

नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि  हे बालक ! 

तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। 

तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। 

नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी।

बालक- मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?

नारद- तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।

बालक- मेरे ऊपर आयी विपत्ति का कारण क्या था ?

नारद- शनिदेव की महादशा।




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  इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर जीने वाले बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।

नारद के जाने के बाद बालक पिप्पलाद ने नारद के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। 





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ब्रह्मा जी ने जब बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति माँगी।

ब्रह्मा जी से वर्य मिलने पर सर्वप्रथम पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वाहन कर अपने सम्मुख प्रस्तुत किया और सामने पाकर आँखे खोलकर भष्म करना शुरू कर दिया।

शनिदेव सशरीर जलने लगे। 

ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया। सूर्यपुत्र शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए। 

सूर्य भी अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देखकर ब्रह्मा जी से बचाने हेतु विनय करने लगे।

अन्ततः ब्रह्मा जी स्वयम् पिप्पलाद के सम्मुख पधारे और शनिदेव को छोड़ने की बात कही किन्तु पिप्पलाद तैयार नहीं हुए।



ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वर्य मांगने की बात कही। 

तब पिप्पलाद ने खुश होकर निम्नवत दो वरदान मांगे-

1- जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा।

जिससे कोई और बालक मेरे जैसा अनाथ न हो।

2- मुझ अनाथ को शरण पीपल वृक्ष ने दी है। 

अतः जो भी व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा उसपर शनि की महादशा का असर नहीं होगा।
 



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  ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया।

तब पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को  अपने ब्रह्मदण्ड से उनके पैरों पर आघात करके उन्हें मुक्त कर दिया । 

जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वे पहले जैसी तेजी से चलने लायक नहीं रहे।

अतः तभी से शनि

 "शनै:चरति य: शनैश्चर:" 

अर्थात जो धीरे चलता है वही शनैश्चर है, कहलाये और शनि आग में जलने के कारण काली काया वाले अंग भंग रूप में हो गए।

       सम्प्रति शनि की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का यही धार्मिक हेतु है।

आगे चलकर पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद की रचना की,जो आज भी ज्ञान का अकूत भंडार है।🌷🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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