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।। बहुत सुंदर शिक्षा पद कहानी ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। बहुत सुंदर शिक्षा पद कहानी ।।


|| रंग पंचमी ||


रंग पंचमी भारत में एक ऐसा त्योहार है, जो केवल आनंद मनाने का अवसर नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी है। 

यह पर्व होली के पांच दिन बाद मनाया जाता है। 

होली के समय लोग एक - दूसरे पर रंग डालकर खुशियाँ मनाते हैं, जबकि रंग पंचमी पर रंगों और गुलाल को आसमान में उड़ाने की परंपरा है। 

धार्मिक दृष्टिकोण से, ऐसा करने से न केवल वातावरण की शुद्धि होती है, बल्कि देवताओं का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।

रंग पंचमी विशेष रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है।
महाराष्ट्र में इसे “ शिमगा ” के नाम से जाना जाता है, और इस अवसर पर विशेष जुलूस निकाले जाते हैं। 

इस दिन मंदिरों और घरों में भगवान कृष्ण और राधा रानी की पूजा की जाती है। 

इसके साथ ही, कई स्थानों पर महालक्ष्मी पूजा का आयोजन भी किया जाता है, जिससे घर में सुख और समृद्धि बनी रहे।


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रंग पंचमी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व :

भगवान कृष्ण और राधा रानी की होली रंग पंचमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने राधा रानी और गोपियों के साथ होली खेलने की मान्यता है। 

इस आनंद के अवसर पर देवताओं ने आकाश से फूलों की वर्षा की, जिसे देखकर लोगों ने रंगों और गुलाल के साथ इस परंपरा की शुरुआत की।

गुलाल उड़ाने की परंपरा :

कहा जाता है कि रंग पंचमी पर गुलाल उड़ाने से देवता प्रसन्न होते हैं। 

और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 

यह रंग केवल बाहरी नहीं होते, बल्कि हमारे जीवन में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार भी करते है।

नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति :

पौराणिक मान्यता के अनुसार, रंग पंचमी के दिन वातावरण में फैली सभी नकारात्मक शक्तियाँ समाप्त हो जाती हैं। 

और वातावरण शुद्ध हो जाता है। 

इस दिन किए गए विशेष पूजन से घर में शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

          || रंग पंचमी की शुभकामनाएं ||


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शीतला सप्तमी - अष्टमी पर बासी खाने का भोग क्यों लगाया जाता है ? 

क्या है इस दिन का आपकी सेहत से कनेक्शन, जानें शीतला माता को ठंडा भोजन चढ़ाने के पीछे का महत्व, वैज्ञानिक और धार्मिक कारण...!

सिल सप्तमी 2025 : भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का अपना विशेष महत्व है। 

शीतला सप्तमी और अष्टमी का पर्व हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। 

इसे बासोड़ा भी कहा जाता है।

इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है और उन्हें बासी खाने का भोग लगाया जाता है। 

शीतला माता की पूजा में विशेष रूप से बासी खाने का भोग अर्पित किया जाता है। 

यह पर्व चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। 

2025 में सील सप्तमी 21 मार्च को और शीतला अष्टमी 22 मार्च को रहेगी। 

इस दिन शीतला माता की पूजा कर घर - परिवार की सुख-समृद्धि और आरोग्यता की कामना की जाती है। 



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क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों इस दिन बासी खाना खाने और भोग लगाने की परंपरा है? 

साथ ही क्या बासी खाना सेहत के लिए फायदेमंद है? 

आइए, इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं। 
 
शीतला सप्तमी - अष्टमी का महत्व : -

शीतला सप्तमी और अष्टमी का पर्व होली के बाद मनाया जाता है। 

इसे •' बासौड़ा ' भी कहा जाता है। 

शीतला सप्तमी का पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। 

इस दिन शीतला माता की पूजा कर बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। 

मान्यता है कि शीतला माता को ठंडा और बासी भोजन अत्यंत प्रिय है। 

इस दिन महिलाएं प्रातःकाल उठकर शीतला माता के मंदिर में जाकर पूजन करती हैं और वहां बासी खाने का प्रसाद चढ़ाती हैं। 



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मुख्य रूप से गुड़, चूरमा, बासी पूड़ी, बाजरे की रोटी और कढ़ी का भोग लगाया जाता है। 

इस पर्व का एक प्रमुख उद्देश्य रोग - निवारण और स्वच्छता का संदेश देना है। 

शीतला माता को देवी पार्वती का रूप माना जाता है, जो विशेष रूप से चेचक और अन्य संक्रामक रोगों से बचाव करती हैं। 

शीतला माता को ठंडक और शीतलता का प्रतीक माना जाता है, इस लिए पूजा में गर्म या ताजे भोजन का प्रयोग नहीं होता।
 
क्यों चढ़ाया जाता है बासी खाने का भोग ?


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तपन और शीतलता का संतुलन:- 

होली का त्योहार गर्मी का प्रतीक होता है, जबकि शीतला माता को शीतलता का प्रतीक माना जाता है। 

बासी खाने का भोग शीतलता का प्रतीक है और इसे ग्रहण कर मां को प्रसन्न किया जाता है।

धार्मिक मान्यता:- 

धार्मिक मान्यता के अनुसार, होली के दिन ताजे खाने का भोग चढ़ाया जाता है, भारत अपडेटस कि प्रस्तुति - जबकि शीतला सप्तमी पर बासी भोजन का। 

इससे यह संकेत मिलता है कि जीवन में शीतलता और धैर्य का महत्व कितना है।

संक्रामक रोगों से बचाव : - 

प्राचीन समय में चेचक और खसरा जैसी बीमारियां अधिक फैलती थीं। 

इस दिन खाना न पकाने की परंपरा इसलिए भी है ताकि भोजन में धूल - मिट्टी और संक्रमण न लगे।
 
क्या बासी खाना सेहत के लिए फायदेमंद है?

बासी खाने को लेकर अलग - अलग धारणाएं प्रचलित हैं। 

कुछ लोग इसे सेहत के लिए हानिकारक मानते हैं, जबकि कुछ इसे पाचन शक्ति के लिए लाभकारी मानते हैं।
 
बासी खाने के फायदे : -

पाचन में सहायक : - 

बासी खाना ठंडा होने के कारण पाचन तंत्र पर अतिरिक्त दबाव नहीं डालता।

प्रोबायोटिक्स से भरपूर : - 

बासी चावल और दही में प्राकृतिक रूप से प्रोबायोटिक्स होते हैं जो आंतों के स्वास्थ्य के लिए अच्छे माने जाते हैं।

ऊर्जा का स्त्रोत:- 

बासी खाने में ऊर्जा बनाए रखने के लिए आवश्यक पोषक तत्व भी होते हैं।

शीतला सप्तमी:- 

अष्टमी पर बासी खाने का भोग लगाने की परंपरा का वैज्ञानिक आधार भी है। 

गर्मी के मौसम में ताजे खाने की तुलना में बासी खाने को सही तरीके से संग्रहित करके खाने से पाचन प्रक्रिया में सहायता मिलती है। 

यही कारण है कि इस दिन बासी भोजन चढ़ाया जाता है और प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। 

शीतला सप्तमी - अष्टमी का पर्व केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक ही नहीं, बल्कि स्वस्थ जीवन शैली का भी संदेश देता है। 

हालांकि, यदि आप सेहत को प्राथमिकता देते हैं, तो बासी खाने को लेकर सावधानी जरूर बरतें।

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आज की कहानी बहुत ही प्यारी है !

जिस घर में जायदाद के लिए जमीन ,मकान के लिए भाई भाई मै लड़ाई होती है आज उनके लिए यह कहानी मै मुझे उम्मीद है हमारे सभी भाई / बहिन जरूर पढ़ेंगे और दूसरो को भी सुनाएंगे सभी पढ़े..!

अच्छे अच्छे महलों मे भी एक दिन कबूतर अपना घोंसला बना लेते है...!
              
सेठ घनश्याम के दो पुत्रों में जायदाद और ज़मीन का बँटवारा चल रहा था और एक चार पट्टी के कमरे को लेकर विवाद गहराता जा रहा था...! 

एकदिन दोनो भाई मरने मारने पर उतारू हो चले , तो पिता जी बहुत जोर से हँसे। 

पिताजी को हँसता देखकर दोनो भाई  लड़ाई को भूल गये,  और पिताजी से हँसी का कारण पुछा। 
               
तो पिताजी ने कहा-- इस छोटे से ज़मीन के टुकडे के लिये इतना लड़ रहे हो छोड़ो इसे आओ मेरे साथ एक अनमोल खजाना बताता हूँ मैं तुम्हे !
              
पिता घनश्याम जी और दोनो पुत्र पवन और मदन उनके साथ रवाना हुये पिताजी ने कहा देखो यदि तुम आपस मे लड़े तो फिर मैं तुम्हे उस खजाने तक नही लेकर जाऊँगा और बीच रास्ते से ही लौटकर आ जाऊँगा !
                  
अब दोनो पुत्रों ने खजाने के चक्कर मे एक समझौता किया की चाहे कुछ भी हो जाये पर हम लड़ेंगे नही प्रेम से यात्रा पे चलेंगे !
                 
गाँव जाने के लिये एक बस मिली पर  सीट दो की मिली, और  वो तीन थे, अब पिताजी के साथ थोड़ी देर पवन बैठे तो थोड़ी देर मदन ऐसे चलते - चलते लगभग दस घण्टे का सफर तय किया फिर गाँव आया।
                  
घनश्याम दोनो पुत्रों को लेकर एक बहुत बड़ी हवेली पर गये हवेली चारों तरफ से सुनसान थी। 

घनश्याम ने जब देखा की हवेली मे जगह जगह कबूतरों ने अपना घोसला बना रखा है, तो घनश्याम वहीं पर बैठकर रोने लगे।
               
दोनो पुत्रों ने पुछा क्या हुआ पिताजी आप रो क्यों रहे है ?
     
तो रोते हुये उस वृद्ध पिता ने कहा जरा ध्यान से देखो इस घर को, जरा याद करो वो बचपन जो तुमने यहाँ बिताया था...!

तुम्हे याद है पुत्र इस हवेली के लिये मैं ने अपने भाई से बहुत लड़ाई की थी, सो ये हवेली तो मुझे मिल गई पर मैंने उस भाई को हमेशा के लिये खो दिया...!

क्योंकि वो दूर देश में जाकर बस गया और फिर वक्त्त बदला और एक दिन हमें भी ये हवेली छोड़कर जाना पड़ा ! 
         
अच्छा तुम ये बताओ बेटा की जिस सीट पर हम बैठकर आये थे, क्या वो बस की सीट हमें मिल जायेगी ? 

और यदि मिल भी जाये तो क्या वो सीट हमेशा - हमेशा के लिये हमारी हो सकती है ? 

मतलब की उस सीट पर हमारे सिवा कोई न बैठे। 

तो दोनो पुत्रों ने एक साथ कहा की ऐसे कैसे हो सकता है , बस की यात्रा तो चलती रहती है और उस सीट पर सवारियाँ बदलती रहती है। 

पहले कोई और बैठा था , आज कोई और बैठा होगा और पता नही कल कोई और बैठेगा। 

और वैसे भी उस सीट में क्या धरा है जो थोड़ी सी देर के लिये हमारी है !
                 
पिताजी फिर हँसे फिर रोये और फिर वो बोले देखो यही तो मैं तुम्हे समझा रहा हूँ...!

कि जो थोड़ी देर के लिये तुम्हारा है....!

तुमसे पहले उसका मालिक कोई और था बस थोड़ी सी देर के लिये तुम हो और थोड़ी देर बाद कोई और हो जायेगा।
                
बस बेटा एक बात ध्यान रखना की इस थोड़ी सी देर के लिये कही अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना, यदि कोई प्रलोभन आये तो इस घर की इस स्थिति को देख लेना की अच्छे अच्छे महलों में भी एक दिन कबूतर अपना घोसला बना लेते है। 

बस बेटा मुझे यही कहना था -- 

कि  बस की उस सीट को याद कर लेना जिसकी रोज उसकी सवारियां बदलती रहती है उस सीट के खातिर अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना जिस तरह से बस की यात्रा में तालमेल बिठाया था बस वैसे ही जीवन की यात्रा मे भी तालमेल बिठा लेना !

           
दोनो पुत्र पिताजी का अभिप्राय समझ गये, और पिता के चरणों में गिरकर रोने लगे !

शिक्षा :- 

जो कुछ भी ऐश्वर्य - सम्पदा हमारे पास है वो सबकुछ बस थोड़ी देर के लिये ही है , थोड़ी - थोड़ी देर मे यात्री भी बदल जाते है और मालिक भी। 

रिश्तें बड़े अनमोल होते है छोटे से ऐश्वर्य या सम्पदा के चक्कर मे कहीं किसी अनमोल रिश्तें को न खो देना ! !

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹जय श्री कृष्ण🌹🌹🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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