सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। ज्योतिष में श्राद्ध का महात्म्य ओर महत्व ।।
|| श्राद्ध न करने वाले को कष्ट- ||
श्राद्ध न करने वाले को पग पग पर कष्ट का सामना करना पड़ता है।
मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे सम्बन्धीओ का रक्त चूसने लगता है-
श्राद्धं न कुरूते मोहात् तस्य रक्तं पिबन्ति ते।
(ब्रह्मपुराण)
पितरस्तस्य शापं दत्तवा प्रयान्ति च
(नागरखण्ड)
फिर यह अभिशप्त परिवार को जीवन भर कष्ट झेलना पड़ता है।
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उस परिवार में पुत्र नही उत्पन्न होता, कोई निरोग नही रहता,लम्बी आयु नही होती,किसी तरह का कल्याण नही होता और मरने के बाद नरक भी जाना पड़ता है।
उपनिषद् मे कहा गया है कि-
देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम्
( तै.उप.1/11/1)
अर्थात देवता तथा पितरो के कार्य मे मनुष्य को कदापि प्रमाद नही करना चाहिए। प्रमाद से प्रत्यवाय होता है।
|| सर्व पितरेश्वराय नमः ||
आज आश्विन मास कृष्ण पक्ष वर्षा ऋतू सप्तमी बुधवार कृत्तिका / रोहिणी नक्षत्र है
आज महालक्ष्मी व्रत पूजन अनुष्ठान समाप्ति ( अर्धरात्रि चंन्द्रोदय व्यापिनी ग्राह्य )
चंन्द्रोदय (रा १० \ २४ सप्तमी की श्राद्ध होगी
आज स्वर्ग की भद्रा दिन में ८ \ ५९ तक
सर्वार्थ सिद्धयोग सम्पूर्ण दिन रवि योग दिन में ८ \ ४० तक बाद
कल अष्टमी की श्राद्ध होगी और जीवत्पुत्रिका व्रत होगा....!
इसी प्रकार श्राद्ध की जानकारी प्रति दिन दे दी जायेगी
गृहों का राशि में संचरण
सूर्य / सिंह
चंद्र / वृष
मंगल / मेष
बुध / कन्या
गुरु / 4धनु
#शुक्र / कर्क
शनि मकर
#राहु मिथुन
# केतु / धनु
#नोट # चिन्ह वक्री की पहचान है
|| श्राद्ध की परिभाषा ||
पितरों के उद्देश्य से विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है....!
उसे श्राद्ध कहते हैं -
श्रद्धया पितॄन् उद्दिश्य विधिना क्रियते यत्कर्म तत् श्राद्धम्।
श्रद्धासे ही श्राद्ध शब्दकी निष्पत्ति होती है-
श्रद्धार्थमिदं श्राद्धम्', श्रद्धया कृतं सम्पादितमिदम्',' श्रद्धया दीयते यस्मात् तच्छ्राद्धम्' तथा 'श्रद्धया इदं श्राद्धम् '।
अर्थात् अपने मृत पितृगण के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले कर्मविशेष को श्राद्ध शब्द के नाम से जाना जाता है।
इसे ही पितृयज्ञ भी कहते हैं, जिसका वर्णन मनुस्मृति आदि धर्मशास्त्रों, पुराणों तथा वीरमित्रोदय, श्राद्धकल्पलता, श्राद्धतत्त्व, पितृदयिता आदि अनेक ग्रन्थोंमें प्राप्त होता है।
महर्षि पराशर के अनुसार 'देश, काल तथा पात्र में हविष्यादि विधि द्वारा जो कर्म तिल ( यव ) और दर्भ ( कुश ) तथा मन्त्रों से युक्त होकर श्रद्धापूर्वक किया जाय, वही श्राद्ध है।
देशे काले च पात्रे च विधिना हविषा च यत्।
तिलैर्दर्भेश्च मन्त्रैश्च श्राद्धं स्याच्छूद्धया युतम् ।।
महर्षि बृहस्पति तथा श्राद्धतत्त्वमें वर्णित महर्षि पुलस्त्य के वचनके अनुसार-
'जिस कर्मविशेष में दुग्ध, घृत और मधु से युक्त सुसंस्कृत ( अच्छी प्रकारसे पकाये हुए ) उत्तम व्यंजन को श्रद्धापूर्वक पितृगण के उद्देश्य से ब्राह्मणादि को प्रदान किया जाय, उसे श्राद्ध कहते हैं ।
संस्कृतं व्यञ्जनाद्यं च पयोमधुघृतान्वितम् ।
श्रद्धया दीयते यस्माच्छ्राद्धं तेन निगद्यते ॥
इसी प्रकार ब्रह्मपुराण में भी श्राद्ध का लक्षण लिखा है-
'देश, काल और पात्र में विधिपूर्वक श्रद्धा से पितरों के उद्देश्य से जो ब्राह्मण को दिया जाय,उसे श्राद्ध कहते हैं।'
देशे काले च पात्रे च श्रद्धया विधिना च यत्।
पितृनुद्दिश्य विप्रेभ्यो दत्तं श्राद्धमुदाहृतम् ॥
श्राद्ध कर्ता का भी कल्याण जो प्राणी विधिपूर्वक शान्तमन होकर श्राद्ध करता है...!
वह सभी पापों से रहित होकर मुक्ति को प्राप्त होता है तथा फिर संसार - चक्र में नहीं आता।
योऽनेन विधिना श्राद्धं कुर्याद् वै शान्तमानसः ।
व्यपेतकल्मषो नित्यं याति नावर्तते पुनः॥
|| श्राद्ध अवश्य करें ||
कैसे दें पितृों को तर्पण....!!
♦ भारतीय शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पितृगण पितृपक्ष में पृथ्वी पर आते हैं और 15 दिनों तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं।
शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों के आस - पास रहते हैं...!
इस लिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करें जिससे पितृगण नाराज हों।
♦ पितरों को खुश रखने के लिए पितृ पक्ष में कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मण, जामाता, भांजा, मामा, गुरु, नाती को भोजन कराना चाहिए।
इस से पितृगण अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
♦ ब्राह्मणों को भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़कर लाना चाहिए अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं...!
जिससे ब्राह्मणों द्वारा अन्न ग्रहण करने के बावजूद पितृगण भोजन का अंश ग्रहण नहीं करते हैं।
♦ पितृ पक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव - जंतु को मारना नहीं चाहिए बल्कि उनके योग्य भोजन का प्रबंध करना चाहिए।
हर दिन भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकाल कर गाय, कुत्ता, कौआ अथवा बिल्ली को देना चाहिए।
♦ मान्यता है कि इन्हें दिया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त हो जाता है।
शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर पितृगणों का ध्यान करना चाहिए।
♦ हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं...!
उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए।
♦ इस पक्ष में जो लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते हैं...!
उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं।
जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती....!
उनके लिए पितृ पक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी निर्धारित की गई हैं....!
जिस दिन वे पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं।
♦ आश्विन कृष्ण प्रतिपदा: इस तिथि को नाना - नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है।
इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
यदि नाना - नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं।
♦ पंचमी: जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो...!
उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए।
♦ नवमी: सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो....!
उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है।
यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है।
इस लिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं।
मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।
♦ एकादशी और द्वादशी: एकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं।
अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।
♦ चतुर्दशी: इस तिथि में शस्त्र, आत्म - हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है...!
जब कि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है।
♦ सर्वपितृमोक्ष अमावस्या: किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है...!
तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है।
शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है।
♦ यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो....!
उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए।
बाकी तो जिनकी जो तिथि हो...!
श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए।
यही उचित भी है।
पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें।
♦ जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं....!
वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपभोग करते हैं।
विशेष: श्राद्ध कर्म करने वालों को निम्न मंत्र तीन बार अवश्य पढ़ना चाहिए।
यह मंत्र ब्रह्मा जी द्वारा रचित आयु, आरोग्य, धन, लक्ष्मी प्रदान करने वाला अमृतमंत्र है -
देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिश्च एव च।
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत ।।
(वायु पुराण) ।।
♦ श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें।
प्रातः एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है।
हमारे धर्म - ग्रंथों में पितरों को देवताओं के समान संज्ञा दी गई है।
सिद्धांत शिरोमणि ग्रंथ के अनुसार चंद्रमा की ऊध्र्व कक्षा में पितृलोक है जहां पितृ रहते हैं।
पितृ लोक को मनुष्य लोक से आंखों द्वारा नहीं देखा जा सकता।
जीवात्मा जब इस स्थूल देह से पृथक होती है उस स्थिति को मृत्यु कहते हैं।
♦ यह भौतिक शरीर 27 तत्वों के संघात से बना है।
स्थूल पंच महाभूतों एवं स्थूल कर्मेन्द्रियों को छोड़ने पर अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर भी 17 तत्वों से बना हुआ सूक्ष्म शरीर विद्यमान रहता है।
♦हिंदू मान्यताओं के अनुसार एक वर्ष तक प्रायः सूक्ष्म जीव को नया शरीर नहीं मिलता।
मोहवश वह सूक्ष्म जीव स्वजनों व घर के आसपास घूमता रहता है।
श्राद्ध कार्य के अनुष्ठान से सूक्ष्म जीव को तृप्ति मिलती है इसी लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है।
♦ अगर किसी के कुंडली में पितृदोष है और वह इस श्राद्ध पक्ष में अपनी कुंडली के अनुसार उचित निवारण करते है तोह ज़िन्दगी की बहुत सी समस्याओ से मुक्ति पा सकते है।
♦ योग्य ब्राह्मण द्वारा ही श्राद्ध कर्म पूर्ण करवाये, ऐसा कुछ भी नहीं है कि इस अनुष्ठान में ब्राह्मणों को जो भोजन खिलाया जाता है...!
वही पदार्थ ज्यों का त्यों उसी आकार, वजन और परिमाण में मृतक पितरों को मिलता है।
♦ वास्तव में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध में दिए गए भोजन का सूक्ष्म अंश परिणत होकर उसी अनुपात व मात्रा में प्राणी को मिलता है जिस योनि में वह प्राणी है।
♦ पितृ लोक में गया हुआ प्राणी श्राद्ध में दिए हुए अन्न का स्वधा रूप में परिणत हुए को खाता है।
♦ यदि शुभ कर्म के कारण मर कर पिता देवता बन गया तो श्राद्ध में दिया हुआ अन्न उसे अमृत में परिणत होकर देवयोनि में प्राप्त होगा।
गंधर्व बन गया हो तो वह अन्न अनेक भोगों के रूप में प्राप्त होता है।
पशु बन जाने पर घास के रूप में परिवर्तित होकर उसे तृप्त करेगा।
♦ यदि नाग योनि मिली तो श्राद्ध का अन्न वायु के रूप में तृप्ति को प्राप्त होगा।
दानव, प्रेत व यक्ष योनि मिलने पर श्राद्ध का अन्न नाना अन्न पान और भोग्य रसादि के रूप में परिणत होकर प्राणी को तृप्त करेगा।
♦ अगर आपकी कुंडली मे पितृ दोष है तो आप अपने कुंडली के अनुसार उचित उपाय करें ।
ये तीन चीजें अत्यन्त दुर्लभ हैं और देवताओं की कृपा से ही मिलती हैं -
1- मनुष्य का जन्म,
2- मोक्ष की इच्छा,
3- महापुरुषों का संग,
दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम् |
मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरूषसश्रय: ||
मनुष्यत्व,मुमुक्षत्व, और सत्पुरुषों का सहवास ईश्वरानुग्रह कराने वाले ये तीन मिलना,अति दुर्लभ है ।
अर्थात् :- मनुष्य जन्म,मुक्तिकी इच्छा तथा महापुरूषों का सहवास यह तीन चीजें परमेश्वर की कृपापर निर्भर रहते है।
ब्रह्मनिष्ठा का महत्त्व -
लब्ध्वा कथञ्चिन्नरजन्म दुर्लभं
तत्रापि पुंस्त्वं श्रुतिपारदर्शनम् |
य: स्वात्ममुक्तौ न यतेत मूढ़धी:
स ह्यात्महा स्वं विनिहन्त्यसद्ग्रहात् ||
किसी प्रकार इस दुर्लभ मनुष्य जन्म को पाकर और उसमें भी, जिसमें श्रुति के सिद्धात का ज्ञान होता है ऐसा पुरुषत्व पाकर जो मूढ़बुद्धि अपने आत्मा की मुक्ति के लिए प्रयत्न नहीं करता...!
वह निश्चय ही आत्मघाती है; वह असत् में आस्था रखने के कारण अपने को नष्ट करता है।
इत: को न्वस्ति मूढात्मा यस्तु स्वार्थे प्रमाद्यति दुर्लभं मानुषं देहं प्राप्य तत्रापि पौरुषम् ।
दुर्लभ मनुष्य - देह और उसमें भी पुरुषत्व को पाकर जो स्वार्थ - साधन में प्रमाद करता है,उससे अधिक मूढ़ और कौन होगा ।।
प्रश्न नहीं स्वाध्याय करें।
अगर श्राद्ध करनेके लिये किसीके पास में कुछ भी न हो तो वह क्या करे ?
अगर किसी के पास श्राद्ध करने के लिए धन न हो....!
तो उसे अपनी क्षमतानुसार कुछ भी दान करना चाहिए...!
जैसे दूध, फल या सब्जियां।
अगर यह भी संभव न हो....!
तो आप कुशा ( एक प्रकार की घास ) का पिंड बनाकर गाय को खिला सकते हैं या नदी किनारे से मिट्टी का पिंड बना कर दान कर सकते हैं।
यदि ये भी संभव न हो तो अपने हाथ उठाकर पितरों से संतुष्ट होने की प्रार्थना करें।
अगर किसी के पास में कुछ भी न हो....!
घर में खाने के लिये अन्न भी न हो तो पितरों के नाम से गाय को हरी - हरी घास देनी चाहिये।
इस से भी पितरों की तृप्ति होती है।
अगर घास भी देने की शक्ति न हो तो दोनों हाथ ऊपर उठाकर...!
अपनी काँखें दिखाकर प्रार्थना करे कि 'मैं भूखा हूँ....!
मेरे पास खाने के लिये भी कुछ नहीं है...!
मुझे क्षमा करें' ऐसा कहकर दण्डवत् प्रणाम करे...!
तो इस से भी पितरों की तृप्ति होती है।
|| सर्व पितरेशवराय नमः ||
जय श्री कृष्ण...!!!
आप का दिन शुभ हो
🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Ramanatha Swami Covil Car Parking Ariya Strits , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits , V.O.C. Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

बहुत सुंदर 🙏🙏🙏
જવાબ આપોકાઢી નાખોSuperb
જવાબ આપોકાઢી નાખો