सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। श्री यजुर्वेद के अनुसार ज्योतिष शास्त्र विधा में दिशाशूल फल ।।
★★श्री हमारे यजुर्वेद के अनुसार ज्योतिष शास्त्र विधा में देखे के दिशाशूल महत्व फल और लाभ ।
दिशा शूल ले जाओ बामे, राहु योगिनी पूठ।
सम्मुख लेवे चंद्रमा, लावे लक्ष्मी लूट।
दिशाशूल क्या होता है ?
दिशाशूल वह दिशा है जिस तरफ यात्रा नहीं करना चाहिए।
हर दिन किसी एक दिशा की ओर दिशाशूल होता है।
आज कल तो यात्रा सभी लोग खुद के वहान जैसा कि मोटरसाइकिल , मोटरकार , बस , रेलवे या प्लेन से करते ही हैं।
कोई व्यापार के लिए धर से बहार जाते है , कोई धार्मिक कार्य के लिए घर से बहार जाते है , कोई मांगलिक कार्य के लिए ही धर से बहार जाते है अथवा कोई किसी महत्वपूर्ण खरीददारी के लिए ही धर से बहार जाते है।
कोई न कोई की कभी - कभी यात्रा सुखमय होती भी है, कोई न कोई की तो कभी यह यात्रा कष्टमय बन जाती है या कभी - कभी तो बहुत महेनत करने के बाद भी असफलता से भरी होती रहती है।
इस समय यात्रा के विषय में दिशा शूल का अवश्य ध्यान रखना चाहिए।
हमारे बुगुर्ज दादा - दादी हम धर से बहार निकलने से पहले ही कुछ न कुछ तरीके से हमको सलाह दे ही देते थे ।
व्यक्ति के जीवन का अति महत्वपूर्ण कार्य है तो दिशाशूल का ज्ञान होने से व्यक्ति मार्ग में आने वाली बाधाओं से बच भी सकता है।
पूर्व दिशा : -
सोमवार और शनिवार को पूर्व दिशा की यात्रा वर्जित मानी गई है।
इस दिन पूर्व दिशा में दिशा शूल रहता है।
बचाव : -
सोमवार को दर्पण देखकर और शनिवार को अदरक, उड़द की दाल खाकर घर से बाहर निकलें।
पश्चिम दिशा : -
रविवार और शुक्रवार को पश्चिम दिशा की यात्रा वर्जित मानी गई है।
इस दिन पश्चिम दिशा में दिशा शूल रहता है।
बचाव : -
रविवार को दलिया या घी खाकर और शुक्रवार को जौ या राईं खाकर घर से बाहर निकलें।
उत्तर दिशा : -
मंगलवर और बुधवार को उत्तर दिशा की यात्रा वर्जित मानी गई है।
इस दिन उत्तर दिशा में दिशा शूल रहता है।
बचाव : -
मंगलवार को गुड़ खाकर और बुधवार को तिल, धनिया खाकर घर से बाहर निकलें।
दक्षिण दिशा : -
गुरुवार को दक्षिण दिशा की यात्रा वर्जित मानी गई है।
इस दिन दक्षिण दिशा में दिशा शूल रहता है।
बचाव : -
गुरुवार को दहीं या जीरा खाकर घर से बाहर निकलें।
अग्नि दिशा ( दक्षिण दिशा - पूर्व दिशा ) : -
सोमवार और गुरुवार को दक्षिण दिशा -पूर्व दिशा ( आग्नेय ) दिशा की यात्रा वर्जित मानी गई है।
इस दिन इस दिशा में दिशा शूल रहता है।
बचाव : -
सोमवर को दर्पण देखकर, गुरुवार को दहीं या जीरा खाकर घर से बाहर निकलें।
नैऋत्य दिशा ( दक्षिण दिशा - पश्चिम दिशा ) :-
रविवार और शुक्रवार को दक्षिण दिशा - पश्चिम दिशा ( नैऋत्य ) दिशा की यात्रा वर्जित मानी गई है।
इस दिन इस दिशा में दिशा शूल रहता है।
बचाव : -
रविवार को दलिया और घी खाकर और शुक्रवार को जौ खाकर घर से बाहर निकलें।
वायव्य दिशा ( उत्तर दिशा - पश्चिम दिशा ) : -
मंगलवार को उत्तर दिशा -पश्चिम दिशा ( वायव्य ) दिशा की यात्रा वर्जित मानी गई है।
इस दिन इस दिशा में दिशा शूल रहता है।
बचाव : -
मंगलवार को गुड़ खाकर घर से बाहर निकलें।
ईशान दिशा ( उत्तर दिशा - पूर्व दिशा ) : -
बुधवार और शनिवार को उत्तर दिशा - पूर्व दिशा ( ईशान ) दिशा की यात्रा वर्जित मानी गई है।
इस दिन इस दिशा में दिशाशूल रहता है।
बचाव : -
बुधवार को तिल या धनिया खाकर और शनिवार को अदरक, उड़द की दाल या तिल खाकर घर से बाहर निकलें।
यदि एक ही दिन यात्रा करके उसी दिन वापिस आ जाना हो तो ऐसी दशा में दिशाशूल का विचार नहीं किया जाता है।
ज्यादातर भी देखे तो दिशाशूल का उपयोग जातक नई नोकरी के लिए बहार जाना ,सगाई करने सबंध करने के लिए या लड़का या लड़की देखने या उनका लग्न का तारीख पक्का करने के लिए बहार जाना ।
परन्तु यदि कोई आवश्यक कार्य करने के लिए बहार जाना हो या लड़की को उसका ससुराल भेजना हो या ससुराल से लड़की पियर में माता - पिता के पास भेजना हो ओर उसी दिशा की तरफ यात्रा करनी ही पड़े ।
लेकिन मूलभूत रीते देखे तो धर का मूल दरवाजा से बहार निकलने के समय से ही जिस दिन वहाँ दिशाशूल हो तो बताएं गए उपाय करके यात्रा कर लेनी चाहिए।
आशा करता हूँ कि आपके जीवन में भी यह उपयोगी सिद्ध होगा तथा आप इसका लाभ उठाकर अपने दैनिक जीवन में सफलता प्राप्त करेंगे।
**********
आध्यात्म एवं ज्योतिष में सप्तमी तिथि का महत्त्व :
हिंदू पंचाग की सातवी तिथि सप्तमी कहलाती है।
इस तिथि को मित्रापदा भी कहते हैं।
सप्तमी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 73 डिग्री से 84 डिग्री अंश तक होता है।
वहीं कृष्ण पक्ष में सप्तमी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 253 से 264 डिग्री अंश तक होता है।
सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्यदेव माने गए हैं।
मान सम्मान में व़द्धि और उत्तम व्यक्तित्व के लिए इस तिथि में जन्मे लोगों को भगवान सूर्यदेव का पूजन अवश्य करना चाहिए।
सप्तमी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व :
यदि सप्तमी तिथि सोमवार और शुक्रवार को पड़ती है तो मृत्युदा योग बनाती है।
इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है।
इस के अलावा सप्तमी तिथि बुधवार को होती है तो सिद्धा कहलाती है।
ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है।
बता दें कि सप्तमी तिथि भद्र तिथियों की श्रेणी में आती है।
यदि किसी भी पक्ष में सप्तमी शुक्रवार के दिन पड़ती है तो क्रकच योग बनाती है, जो अशुभ होता है, जिसमें शुभ कार्य निषिद्ध होते हैं।
वहीं शुक्ल पक्ष की सप्तमी में भगवान शिव का पूजन करना चाहिए लेकिन कृष्ण पक्ष की सप्तमी में शिव का पूजन करना वर्जित है।
ज्योतिष के अनुसार सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा का दिन माना जाता है, जो संकटों का नाश करने वाली हैं।
सप्तमी तिथि में जन्मे जातक अपने कार्यों को लेकर सजग और जिम्मेदार होते हैं, जिसकी वजह से इनके द्वारा किए गए कार्य हमेशा सफल होते हैं।
सूर्य स्वामी होने की वजह से इनमें नेतृत्व का गुण पाया जाता है।
इन लोगों को मेल मिलाप करना पसंद नहीं होता है लेकिन ये लोग घूमने का शौक रखते हैं।
ये जातक धनवान होते हैं और मेहनत से किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने की कोशिश करते रहते हैं।
इन लोगों में प्रतिभा कूट - कूटकर भरी होती है।
इस तिथि में जन्मे जातक कलाकार भी होते हैं।
इन व्यक्तित्व काफी प्रभावशाली होता है।
लेकिन इन जातकों को जीवनसाथी का भरपूर सहयोग नहीं मिलता है, जिसकी वजह से तनाव झेलना पड़ता है।
इन जातकों को संतान की तरफ से प्रेम और साथ जरूर मिलता है, जिसकी वजह से मन में संतोष बना रहता है।
सप्तमी में किये जाने वाले शुभ कार्य :
सप्तमी तिथि में यात्रा, विवाह, संगीत, विद्या व शिल्प आदि कार्य करना लाभप्रद रहता है।
इस तिथि पर किसी नए स्थान पर जाना, नई चीजों खरीदना शुभ माना गया है।
इस तिथि में चूड़ाकर्म, अन्नप्राशन और उपनयन जैसे संस्कार करना उत्तम माना जाता है।
इस के अलावा किसी भी पक्ष की सप्तमी तिथि में तेल और नीले वस्त्रों को धारण नहीं करना चाहिए।
साथ ही तांबे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।
सप्तमी तिथि के प्रमुख त्यौहार एवं व्रत व उपवास :
शीतला सप्तमी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शीतला सप्तमी मनाई जाती है।
इस तिथि पर माता शीतला का पूजन किया जाता है, जो चिकन पॉक्स या चेचक नामक रोग दूर करने वाली माता हैं।
इस दिन व्रतधारी घर पर चूल्हा नहीं जलते हैं बल्कि बासी भोजन ग्रहण करते हैं।
संतान सप्तमी भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को ललिता सप्तमी मनाई जाती है।
इस तिथि पर सभी माताएं अपनी संतान की दीर्घायु और सफलता के लिए संतान सप्तमी का व्रत रखती हैं।
इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है।
गंगा सप्तमी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगा सप्तमी का पर्व मनाया जाता है।
इस दिन भागीरथ को गंगा माता को धरती पर लाने में कामयाबी मिली थी।
इस दिन गंगा स्नान का बहुत महत्व है।
विष्णु सप्तमी विष्णु सप्तमी मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनायी जाती है।
इस तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है।
इस दिन व्रत करने से अधूरे या रुके हुए काम पूरे हो जाते हैं।
रथ आरोग्य सप्तमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रथ आरोग्य सप्तमी कहते हैं।
इस दिन व्रत करने से कुष्ठ रोग नहीं होता है और जिसको होता है उसे मुक्ति मिल जाती है।
क्योंकि इस तिथि पर श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब ने व्रत किया था और उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल गई थी।
।। आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो ।।
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏


ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો