सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। पितृदोष प्रेत बाधा दोष और श्रापित दोष कुंडली ।।
पितृदोष प्रेत बाधा दोष और श्रापित दोष कुंडली
★★जातक की कुंडली मे पितृदोष , प्रेत बाधा दोष और श्रापित कुंडली के योग ।
जातक की जन्म कुंडली मे पितृदोष को सहज समझने वाला योग नही समझा जा सकता इसके परिणाम जटिल ही गिने जाते है।
इसके बारे शास्त्र सम्मत विस्तारपूर्ण विवरण जानने को मिलना ओर बहुत सी स्वभाविक व सार्वजनिक हो चुकी कम्पलेन्टस जो जीवन के हर काम मे हिचकोले देकर सम्पूर्ण होने में अटकले ओर चिड़चिड़ापन देता है।
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मेनली राहु ग्रह के तीनो त्रिकोनो यानी लगन,पँचम ओर नवम से तगड़ा पितृ दोष जो सब रिश्तों से मिले जुले पुर्वजो की निराशा का अवलोकन देता है।
खासम खास भी पितृ दोष भी होते है जो प्रायः किसी एक रिशते से ही सम्बंधित होते है।
सूर्य + राहु = पिता,दादा,परदादा की पुर्वजो द्बारा अवज्ञा,जो आज तक परछाई की तरह पीछा किये किसी बड़े परिवारिक सदस्य से बेवजह हानि ही देता है।
चन्द्र + राहु = माता,दादी,परदादी का पुर्वजो का इश्चा के विरुद्ब किया ।
एसा महत्वपुर्ण काम जो आज तक मानसिक तनाव देकर पजल व नर्वस किये बगैर ।
आज तक भी कदम आगे ही करने देने मे रोक करे।
मंगल + राहु = भाई की जायदाद या पैसा पुर्वजो से हड़पने पर,जो आजतक पराक्रम को दबाये ।
आराम ही आराम में दिलचस्पी देकर तन,मन के बल को तोड़ टालमटोल से जिन्दगी के मुकामो को निकाल देता है।
बुध + राहु = ऐसा पितृ दोष जो पुर्वजो द्बारा बहन,बेटी ओर बुआ को बनता सम्मान न देने और दुख पहुचाने से बनता है ।
इस का परिणाम आज तक भी ऐन समय दिमाग को चककर देकर बुद्बि को नाश कर गलत फैसला देने से भविष्य धुमिल होने वाला योग निर्मित होता है।
गुरु + राहु = पुर्वजो द्बारा धार्मिक चन्दा,प्रोप्टी पर कब्जा या विद्बान,गुरु को धोखा या दुख देने से उतपन्न हुआ पितृ दोष है ।
जो आज तक भी ब्राहमण या गुरु पीर का आर्शीवाद पूरा नही होने देता।
शुक्र + राहु = किसी भी स्त्री या पत्नी भी हो लगातार सताये जाने से मिली बददुआ से जुड़ा पितृ दोष जिसका असर आज तक भी पत्नी या स्त्रियो से विरोधभास बिना कारण दिलाये रखता है ।
ओर नकारात्मक फल दिलाता है।
शनि + राहु = पुर्वजो से अधीनस्थ कर्मचारियो की अमानत में खयानत या मजदुरी का हक न देने से बनने वाला योग है ।
जो आज भी नौकरों, मजदुरो से ठीक व्यहार से भी नुकसान ही देता है ओर ऐसे नुकसान देता है ।
जिसकी कल्पना ही नही की जा सकती।
पित्रदोष की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध एवं पितृदोष निवारण निवारण पूजन अवश्य करावे ।
ऊपर बताए गई अपनी बुरी आदत हो अपने बुरे कामों को सुधार लेना भी इन दोनों से बचने का बहुत बढ़िया साधन है...!
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कब से शुरू होंगे पितृपक्ष 2025? जानें तिथि :
पितृ पक्ष 2025 के दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध जैसे कर्म किए जाते हैं....!
इस समय पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण की अपेक्षा रखते हैं...!
इस अवधि में पवित्र नदियों में स्नान करना और जरूरतमंदों को दान देना विशेष फलदायी माना जाता है...!
पितृ पक्ष में विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है और पितरों की कृपा जीवन में सुख - शांति लाती है....!
इस वर्ष पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर 2025, रविवार को हो रही है....!
भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि 7 सितंबर को देर रात 01:41 बजे प्रारंभ होगी और इसी दिन रात 11:38 बजे समाप्त हो जाएगी...!
ऐसे में 7 सितंबर से ही पितृ पक्ष की विधिवत शुरुआत मानी जाएगी....!
पितृ पक्ष का समापन 21 सितंबर 2025 को सर्व पितृ अमावस्या के दिन होगा, पितृ पक्ष 2025 की तारीखें निम्नलिखित हैं।
रविवार, 7 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
सोमवार, 8 सितंबर- प्रतिपदा श्राद्ध
मंगलवार, 9 सितंबर- द्वितीया श्राद्ध
बुधवार, 10 सितंबर- तृतीया श्राद्ध, चतुर्थी श्राद्ध
गुरुवार, 11 सितंबर- पंचमी श्राद्ध, महा भरणी
शुक्रवार, 12 सितंबर - षष्ठी श्राद्ध
शनिवार, 13 सितंबर- सप्तमी श्राद्ध
रविवार, 14 सितंबर- अष्टमी श्राद्ध
सोमवार, 15 सितंबर- नवमी श्राद्ध
मंगलवार, 16 सितंबर- दशमी श्राद्ध
बुधवार, 17 सितंबर- एकादशी श्राद्ध
गुरुवार, 18 सितंबर- द्वादशी श्राद्ध
शुक्रवार, 19 सितंबर- त्रयोदशी श्राद्ध, मघा श्राद्ध
शनिवार, 20 सितंबर- चतुर्दशी श्राद्ध
रविवार, 21 सितंबर- सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध
पितृ पक्ष का महत्व - पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, एक 16 दिनों की अवधि है जो हिंदू धर्म में पूर्वजों को समर्पित है....!
यह भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलता है....!
इस दौरान पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे धार्मिक कर्म किए जाते हैं....!
इन दिनों पितर पृथ्वी पर अपने वंशजों से तर्पण की अपेक्षा लेकर आते हैं.....!
जो संतान श्रद्धा भाव से उनका स्मरण और तर्पण करती है....!
उन्हें पितरों की कृपा प्राप्त होती है, इससे पितृ दोष दूर होता है और परिवार में सुख - शांति बनी रहती है....!
पितृ ऋण से मुक्ति पाने के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है....!
इस काल में गंगा स्नान, ब्राह्मण भोज और दान करना पुण्यदायी होता है....!
पितरों की संतुष्टि से वंश में समृद्धि, संतान सुख और कुल की उन्नति संभव होती है.....!
इस लिए पितृ पक्ष को श्रद्धा और आस्था से मनाना अत्यंत आवश्यक है।
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ज्योतिष में गण्डमूल / मूल नक्षत्र (भाग १) :
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में २७ नक्षत्रों में ६ नक्षत्र गंड मूल नक्षत्रों की श्रेणी में माने गये हैं-
चंद्र मण्डल से एक लाख योजन ऊपर नक्षत्र मण्डल है।
अश्वनी,- श्लेषा,- मघा -,ज्येष्ठा,- मूल और रेवती।
उपरोक्त नक्षत्रों में उत्पन्न जातक –
जातिका गंड मूलक कहलाते हैं....!
इन नक्षत्रों में उत्पन्न जातक स्वयं व् कुटुम्बी जनों के लिये अशुभ माने गये हैं।
''जातो न जीवतिनरो मातुरपथ्यो भवेत्स्वकुलहन्ता ''
लेकिन पहले यह जानना परम आवश्यक है कि गंड मूल किसे कहते हैं....!
गंड कहते हैं जहाँ एक राशि और नक्षत्र समाप्त हो रहे हो उसे गंड कहते हैं।
मूल कहते हैं –
जहाँ दूसरी राशि से नक्षत्र का आरम्भ हो उसे मूल कहते हैं।
राशि चक्र और नक्षत्र चक्र दोनों में इन ६ नक्षत्रो पर संधि होती है और संधि समय को जितना लाभकारी माना गया है....!
उतना ही हानिकारक भी है...!
संधि क्षेत्र हमेशा नाजुक और अशुभ होते हैं....!
इसी प्रकार गंड मूल नक्षत्र भी संधि क्षेत्र में आने से दुष्परिणाम देने वाले होते हैं और राशि चक्र में यह स्थिति तीन बार आती है।
अब यह समझने का प्रयास करे कि कैसे इन ६ नक्षत्रो को गंड मूल कहा गया है।
१ - आश्लेषा नक्षत्र और कर्क राशि का एक साथ समाप्त होना और यही से मघा नक्षत्र और सिंह राशि का प्रारम्भ।
२ - ज्येष्ठा नक्षत्र और वृश्चिक राशि का समापन और यही से मूल नक्षत्र और धनु राशि का प्रारम्भ।
३ - रेवती नक्षत्र और मीन राशि का समापन और यही से अश्वनी नक्षत्र और मेष राशि का प्रारम्भ।
यहाँ तीन गंड नक्षत्र हैं....!
आश्लेषा ,ज्येष्ठा ,रेवती।
और तीन मूल नक्षत्र हैं....!
मघा, मूल और अश्वनी।
जिस प्रकार एक ऋतु का जब समापन होता है और दूसरी ऋतु का आगमन होता है....!
तो उन दोनों ऋतुओं का मोड स्वास्थ्य के लिये उत्तम् नहीं माना गया है....!
इसी प्रकार नक्षत्रों का स्थान परिवर्तन जीवन और स्वास्थ्य के लिये हानिकारक माना गया है।
गण्डमूल / मूल नक्षत्र :
इस श्रेणी में ६ नक्षत्र आते है !
१. रेवती, २. अश्विनी, ३. आश्लेषा, ४. मघा, ५. ज्येष्ठा, ६. मूल यह ६ नक्षत्र
मूल संज्ञक / गण्डमूल संज्ञक नक्षत्र होते है !
रेवती, आश्लेषा, ज्येष्ठा का स्वामी बुध है !
अश्विनी, मघा, मूल का स्वामी केतु है !
इन्हें २ श्रेणी में विभाजित किया गया है -
बड़े मूल व छोटे मूल। मूल, ज्येष्ठा व आश्लेषा बड़े मूल कहलाते है....!
अश्वनी, रेवती व मघा छोटे मूल कहलाते है।
बड़े मूलो में जन्मे बच्चे के लिए २७ दिन के बाद जब चन्द्रमा उसी नक्षत्र में जाये तो शांति करवानी चाहिए ऐसा पराशर का मत भी है....!
तब तक बच्चे के पिता को बच्चे का मुह नहीं देखना चाहिए !
जबकि छोटे मूलो में जन्मे बच्चे की मूल शांति उस नक्षत्र स्वामी के दूसरे नक्षत्र में करायी जा सकती है....!
अर्थात १० वे या १९ वे दिन में !
यदि जातक के जन्म के समय चंद्रमा इन नक्षत्रों में स्थित हो तो मूल दोष होता है ;
इसकी शांति नितांत आवश्यक होती है !
जन्म समय में यदि यह नक्षत्र पड़े तो दोष होता है !
दोष मानने का कारण यह है की नक्षत्र चक्र और राशी चक्र दोनों में इन नक्षत्रों पर संधि होती है ( चित्र में यह बात स्पष्टता से देखि जा सकती है ) !
और संधि का समय हमेशा से विशेष होता है !
उदाहरण के लिए रात्रि से जब दिन का प्रारम्भ होता है तो उस समय को हम ब्रम्हमुहूर्त कहते है।
और ठीक इसी तरह जब दिन से रात्रि होती है तो उस समय को हम गदा बेला / गोधूली
कहते है !
इन समयों पर भगवान का ध्यान करने के लिए कहा जाता है -
जिसका सीधा सा अर्थ है की इन समय पर सावधानी अपेक्षित होती है !
संधि का स्थान जितना लाभप्रद होता है उतना ही हानि कारक भी होता है !
संधि का समय अधिकतर शुभ कार्यों के लिए अशुभ ही माना जाता है !
गण्डमूल में जन्म का फल :
गण्डमूल के विभिन्न चरणों में दोष विभिन्न लोगो को लगता है....!
साथ ही इसका फल हमेशा बुरा ही
हो ऐसा नहीं है !
अश्विनी नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :
प्रथम पद में - पिता के लिए कष्टकारी
द्वितीय पद में - आराम तथा सुख केलिए उत्तम
तृतीय पद में - उच्च पद
चतुर्थ पद में - राज सम्मान
आश्लेषा नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :
प्रथम पद में - यदि शांति करायीं जाये तो शुभ
द्वितीय पद में - संपत्ति के लिए अशुभ
तृतीय पद में - माता को हानि
चतुर्थ पद में - पिता को हानि
मघा नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :
प्रथम पद में - माता को हानि
द्वितीय पद में - पिता को हानि
तृतीय पद में - उत्तम
चतुर्थ पद में - संपत्ति व शिक्षा के लिए उत्तम
ज्येष्ठा नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :
प्रथम पद में - बड़े भाई के लिए अशुभ
द्वितीय पद में - छोटे भाई के लिए अशुभ
तृतीय पद में - माता के लिए अशुभ
चतुर्थ पद में - स्वयं के लिए अशुभ
मूल नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :
प्रथम पद में - पिता के जीवन में परिवर्तन
द्वितीय पद में - माता के लिए अशुभ
तृतीय पद में - संपत्ति की हानि
चतुर्थ पद में - शांति कराई जाये तो शुभ फल
रेवती नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :
प्रथम पद में - राज सम्मान
द्वितीय पद में - मंत्री पद
तृतीय पद में - धन सुख
चतुर्थ पद में - स्वयं को कष्ट
अभुक्तमूल :
ज्येष्ठा की अंतिम एक घडी तथा मूल की प्रथम एक घटी अत्यंत हानिकर हैं....!
इन्हें ही अभुक्तमूल कहा जाता है, शास्त्रों के अनुसार पिता को बच्चे से ८ वर्ष तक दूर रहना चाहिए !
यदि यह संभव ना हो तो कम से कम ६ माह तो अलग ही रहना चाहिए !
मूल शांति के बाद ही बच्चे से मिलना चाहिए !
अभुक्तमूल पिता के लिए अत्यंत हानिकारक होता है !
यह तो था नक्षत्र गंडांत इसी आधार पर लग्न और तिथि गंडांत भी होता है।
लग्न गंडांत :-
मीन - मेष, कर्क - सिंह, वृश्चिक - धनु लग्न की आधी - २ प्रारंभ व अंत की घडी कुल २४ मिनट लग्न गंडांत होता है !
तिथि गंडांत :-
५, १०, १५ तिथियों के अंत व ६, ११, १ तिथियों के प्रारम्भ की २ - २ घड़ियाँ तिथि गंडांत है रहता है !
जन्म समय में यदि तीनों गंडांत एक साथ पड़ रहे है तो यह महा - अशुभ होता है।
नक्षत्र गंडांत अधिक अशुभ, लग्न गंडांत मध्यम अशुभ व तिथि गंडांत सामान्य अशुभ होता है....!
जितने ज्यादा गंडांत दोष लगेंगे किसी कुंडली में उतना ही अधिक अशुभ फल कारक होंगे।
गण्ड का परिहार :
१. गर्ग के मतानुसार
रविवार को अश्विनी में जन्म हो या सूर्यवार बुधवार को ज्येष्ठ, रेवती, अनुराधा, हस्त, चित्रा, स्वाति हो तो नक्षत्र जन्म दोष कम होता है !
२. बादरायण के मतानुसार गण्ड नक्षत्र में चन्द्रमा यदि लग्नेश से कोई सम्बन्ध, विशेषतया दृष्टि सम्बन्ध न बनाता हो तो इस दोष में कमी होती है !
३. वशिष्ठ जी के अनुसार दिन में मूल का दूसरा चरण हो और रात में मूल का पहला चरण हो तो माता - पिता के लिए कष्ट होता है इसलिए शांति अवश्य कराये!
४. ब्रम्हा जी का वाक्य है की चन्द्रमा यदि बलवान हो तो नक्षत्र गण्डांत व गुरु बलि हो तो लग्न गण्डांत का दोष काफी कम लगता है !
५. वशिष्ठ के मतानुसार अभिजीत मुहूर्त में जन्म होने पर गण्डांतादी दोष प्रायः नष्ट हो जाते है !
लेकिन यह विचार सिर्फ विवाह लग्न में ही देखें, जन्म में नहीं !
निम्नलिखित विशेष परिस्थितियों में गण्ड या गण्डांत का प्रभाव काफी हद तक कम हो जाता है ( लेकिन फिर भी शांति अनिवार्य है ) !
इन नक्षत्रों में जिनका जन्म हुआ हो तो उस नक्षत्र की शान्ति हेतु जप और हवन अवश्य कर लेनी चाहिए --
१ अश्वनी के लिये ५००० मन्त्र जप।
२ आश्लेषा के लिये १०००० मन्त्र जप।
३ मघा के लिये १०००० मन्त्र जप।
४ ज्येष्ठा के लिये ५००० मन्त्र जप।
५ मूल के लिये ५००० मन्त्र जप।
६ रेवती के लिये५००० मन्त्र जप।
इन नक्षत्रों की शान्ति हेतु ग्रह, स्व इष्ट, कुल देवताओं का पूजन ,रुद्राभिषेक तथा नक्षत्र तथा नक्षत्र के स्वामी का पूजन अर्चन करने के बाद दशांश हवन किसी सुयोग्य ब्राह्मण से अवश्य करवाए ।
!!!!! शुभमस्तु !!!
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

Superb
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