सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। ज्योतिष में श्राद्ध का महात्म ओर महत्व ।।
ज्योतिष में श्राद्ध का महात्म ओर महत्व...!
कैसे मिलता है पितरों को भोजन, श्राद्ध करने से मिलते हैं कौन से लाभ ।
प्राय: कुछ लोग यह शंका करते हैं कि श्राद्ध में समर्पित की गईं वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती है?
कर्मों की भिन्नता के कारण मरने के बाद गतियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं।।
कोई देवता, कोई पितर, कोई प्रेत, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई वृक्ष और कोई तृण बन जाता है।।
तब मन में यह शंका होती है कि छोटे से पिंड से अलग - अलग योनियों में पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है ?
इस शंका का स्कंद पुराण में बहुत सुन्दर समाधान मिलता है।
एक बार राजा करंधम ने महायोगी महाकाल से पूछा...!
'मनुष्यों द्वारा पितरों के लिए जो तर्पण या पिंडदान किया जाता है तो वह जल, पिंड आदि तो यहीं रह जाता है फिर पितरों के पास वे वस्तुएं कैसे पहुंचती हैं और कैसे पितरों को तृप्ति होती है।।
भगवान महाकाल ने बताया कि विश्व नियंता ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि श्राद्ध की सामग्री उनके अनुरूप होकर पितरों के पास पहुंचती है।।
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इस व्यवस्था के अधिपति हैं अग्निष्वात आदि।।
पितरों और देवताओं की योनि ऐसी है कि वे दूर से कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा ग्रहण कर लेते हैं और दूर से कही गईं स्तुतियों से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
वे भूत, भविष्य व वर्तमान सब जानते हैं और सभी जगह पहुंच सकते हैं।।
5 तन्मात्राएं, मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति- इन 9 तत्वों से उनका शरीर बना होता है और इसके भीतर 10 वें तत्व के रूप में साक्षात भगवान पुरुषोत्तम उसमें निवास करते हैं।।
इस लिए देवता और पितर गंध व रसतत्व से तृप्त होते हैं।।
शब्द तत्व से तृप्त रहते हैं और स्पर्श तत्व को ग्रहण करते हैं।
पवित्रता से ही वे प्रसन्न होते हैं और वे वर देते हैं।
पितरों का आहार है।।
अन्न - जल का सारतत्व - जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है, पशुओं का आहार तृण है...!
वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सारतत्व ( गंध और रस ) है।
अत: वे अन्न व जल का सारतत्व ही ग्रहण करते हैं।
शेष जो स्थूल वस्तु है, वह यहीं रह जाती है!
किस रूप में पहुंचता है पितरों को आहार।
नाम व गोत्र के उच्चारण के साथ जो अन्न - जल आदि पितरों को दिया जाता है....!
विश्वदेव एवं अग्निष्वात ( दिव्य पितर ) हव्य - कव्य को पितरों तक पहुंचा देते हैं।
यदि पितर देव योनि को प्राप्त हुए हैं तो यहां दिया गया अन्न उन्हें 'अमृत' होकर प्राप्त होता है।।
यदि गंधर्व बन गए हैं, तो वह अन्न उन्हें भोगों के रूप में प्राप्त होता है।
यदि पशु योनि में हैं, तो वह अन्न तृण के रूप में प्राप्त होता है।।
नाग योनि में वायु रूप से, यक्ष योनि में पान रूप से, राक्षस योनि में आमिष रूप में, दानव योनि में मांस रूप में, प्रेत योनि में रुधिर रूप में और मनुष्य बन जाने पर भोगने योग्य तृप्तिकारक पदार्थों के रूप में प्राप्त होता है।
जिस प्रकार बछड़ा झुंड में अपनी मां को ढूंढ ही लेता है...!
उसी प्रकार नाम, गोत्र, हृदय की भक्ति एवं देश - काल आदि के सहारे दिए गए पदार्थों को मंत्र पितरों के पास पहुंचा देते हैं।
जीव चाहें सैकड़ों योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो...!
तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है।
श्राद्ध में आमंत्रित ब्राह्मण पितरों के प्रतिनिधि रूप होते हैं।
एक बार पुष्कर में श्रीरामजी अपने पिता दशरथजी का श्राद्ध कर रहे थे।
रामजी जब ब्राह्मणों को भोजन कराने लगे तो सीताजी वृक्ष की ओट में खड़ी हो गईं।
ब्राह्मण भोजन के बाद रामजी ने जब सीताजी से इसका कारण पूछा तो वे बोलीं।
मैंने जो आश्चर्य देखा, उसे मैं आपको बताती हूं।
आपने जब नाम - गोत्र का उच्चारण कर अपने पिता - दादा आदि का आवाहन किया तो वे यहां ब्राह्मणों के शरीर में छाया रूप में सटकर उपस्थित थे।
ब्राह्मणों के शरीर में मुझे अपने श्वसुर आदि पितृगण दिखाई दिए फिर भला मैं मर्यादा का उल्लंघन कर वहां कैसे खड़ी रहती ?
इस लिए मैं ओट में हो गई।
तुलसी से पिंडार्चन किए जाने पर पितरगण प्रलयपर्यंत तृप्त रहते हैं।।
तुलसी की गंध से प्रसन्न होकर गरुड़ पर आरूढ़ होकर विष्णुलोक चले जाते हैं।पितर प्रसन्न तो सभी देवता प्रसन्न - श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है।
आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।
पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।।
(यमस्मृति,श्राद्धप्रकाश)
यमराजजी का कहना है कि श्राद्ध करने से मिलते हैं ये 6 पवित्र लाभ।
श्राद्ध कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है।
पितरगण मनुष्य को पुत्र प्रदान कर वंश का विस्तार करते हैं।
परिवार में धन - धान्य का अंबार लगा देते हैं।
श्राद्ध कर्म मनुष्य के शरीर में बल-पौरुष की वृद्धि करता है और यश व पुष्टि प्रदान करता है।
पितरगण स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन - धान्य आदि सभी सुख, स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करते हैं।
श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश नहीं रहता, वरन वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है।
|| पितृ देवो की जय हो ||
|| पितृ पक्ष विशेष में-||
पितृ धर्म को छोड़ने या पूर्वजों का अपमान करने आदि से पितृ ऋण बनता है।
इस ऋण का दोष आपके बच्चों पर लगता है जो आपको कष्ट देकर इसके प्रति सतर्क करते हैं।
पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ - साथ संतान की ओर से कष्ट, संतानभाव, संतान का स्वास्थ्य खराब रहने या संतान का सदैव बुरी संगति में रहने से परेशानी झेलना होती है।
पितर दोष के और भी दुष्परिणाम देखे गए हैं-
जैसे कई असाध्य व गंभीर प्रकार का रोग होना।
पीढ़ियों से प्राप्त रोग को भुगतना या ऐसे रोग होना जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहे।
पितर दोष का प्रभाव घर की स्त्रियों पर भी रहता है।
इसके अलावा मातृ ऋण से आप कर्ज में दब जाते हो और ऐसे में आपके घर की शांति भंग हो जाती है।
मातृ ऋण के कारण व्यक्ति को किसी से किसी भी तरह की मदद नहीं मिलती है।
जमा धन बर्बाद हो जाता है।
फिजूल खर्जी को वह रोक नहीं पाता है।
कर्ज उसका कभी उतरना नहीं।
|| पितृ देवाय नम: ||
आज आश्विन मास कृष्ण पक्ष वर्षा ऋतू चतुर्थी / पंचमी रविवार अश्विनी नक्षत्र है...!
सर्वार्थ सिद्ध योग रात्रि ४/२ तक पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के तीसरे चरण में रवि रात्रि ५/३८ पर आज चतुर्थी तिथि की श्राद्ध होगी
कल पंचमी की श्राद्ध और भरणी श्राद्ध होगी इसी प्रकार श्राद्ध की जानकारी प्रति दिन दे दी जायेगी...!
गृहोंका राशि में संचरण सूर्य / सिंह चंद्र / मेष मंगल / मेष बुध / कन्या गुरु / धनु
#शुक्र /
कर्क शनि मकर
#राहुमिथुन
# केतु/ धनु
#नोट #
चिन्ह वक्री की पहचान है...!
|| पितृ पक्ष विशेष में-||
पितृ धर्म को छोड़ने या पूर्वजों का अपमान करने आदि से पितृ ऋण बनता है।
इस ऋण का दोष आपके बच्चों पर लगता है जो आपको कष्ट देकर इसके प्रति सतर्क करते हैं।
पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ - साथ संतान की ओर से कष्ट, संतानभाव, संतान का स्वास्थ्य खराब रहने या संतान का सदैव बुरी संगति में रहने से परेशानी झेलना होती है।
पितर दोष के और भी दुष्परिणाम देखे गए हैं-
जैसे कई असाध्य व गंभीर प्रकार का रोग होना।
पीढ़ियों से प्राप्त रोग को भुगतना या ऐसे रोग होना जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहे।
पितर दोष का प्रभाव घर की स्त्रियों पर भी रहता है।
इसके अलावा मातृ ऋण से आप कर्ज में दब जाते हो और ऐसे में आपके घर की शांति भंग हो जाती है।
मातृ ऋण के कारण व्यक्ति को किसी से किसी भी तरह की मदद नहीं मिलती है।
जमा धन बर्बाद हो जाता है।
फिजूल खर्जी को वह रोक नहीं पाता है।
कर्ज उसका कभी उतरना नहीं।
|| पितृ देवाय नम: ||
|| श्राद्ध पक्ष विषेश में पढ़ें ||
तिनका तिनका जोड़ना था पितरों का श्रम, पितरों से परिवार बने पितरों से ही हम..!
श्रद्धापूर्वक किया जाए वही श्राद्ध है।
महर्षि बृहस्पति तथा श्राद्ध तत्व में वर्णित महर्षि पुलस्त्य के अनुसार जिस कर्म विशेष में दूध - घृत - मधु से युक्त सुसंस्कृत अच्छी प्रकार से पकाए हुए उत्तम व्यंजन को श्रद्धापूर्वक पितृ के उद्देश्य से ब्राह्मादि को प्रदान किया जाए, उसे श्राद्ध कहते है।
श्राद्ध की दो प्रक्रिया, पिंडदान व ब्राह्मण भोजन -
मृत्यु के बाद जो लोग देवलोक या पितृलोक में पहुंचते हैं वे मन्त्रों द्वारा बुलाए जाने पर उन उन लोको से तत्क्षण श्राद्ध देश में आ जाते हैं और निमंत्रित ब्राह्मणों के माध्यम से भोजन कर लेते हैं।
सूक्ष्मग्राही होने से भोजन के सूक्ष्मकणों के आघ्राण से उनका भोजन हो जाता है, वे तृप्त हो जाते हैं।
मनु ने लिखा है कि ब्राह्मण के मुख से देवता हव्य को और पितर कुव्य को ग्रहण करते हैं।
ये मनोजव होते हैं अर्थात इन पितरों की गति मन की गति की तरह होती है।
ये स्मरण से ही श्राद्ध देश मे आ जाते हैं और ब्राह्मणों के साथ भोजन कर तृप्त हो जाते हैं।
इन को सब लोग इस लिये नही देख पाते क्योकि इनका शरीर वायवीय होता है।
यम स्मृति में पांच प्रकार के श्राद्ध का उल्लेख मिलता है-
नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण।
भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं....!
जो इस प्रकार हैं -
1- नित्य, 2- नैमित्तिक, 3- काम्य, 4- वृद्धि, 5- सपिण्डन, 6- पार्वण, 7- गोष्ठी, 8- शुद्धर्थ, 9 काँग, 10- दैविक, 11- यात्रार्थ, 12- पुष्टयर्थ।
श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए।
श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक है।
श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।
ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए।
श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते,श्राप ।देकर लौट जाते हैं।
|| श्रृद्धा ही श्राद्ध है ||
|| ॐ पितरेश्वराय नमः ||
पितरों का श्राद्ध करो ,वो तुम्ह शक्ति देंगे...!
संकल्प -
में अपना नाम....पिता का नाम....माँ का नाम.... गोत्र....भारत देश मे राज्य में में अपने घर आज श्राद्ध पक्ष के पुण्य पर्व पर अपने समस्त पितृओ को जल, धूप, दीप नैवेद्य दे रहा हुं।
जिन्हें आंखों से देखा नहीं जिनके बारे में जानते नही वह भी पितृ आये और मेरे हाथ से धूप, दीप, नैवेध दे रहा हूँ ।
जिन्हें आंखों से देखा नहीं, जिनके बारे में सुना नहीं,जिनके बारे में जानते नहीं वो भी पितर आएं और मेरे हाथ से धूप,दीप,नैवेद्य ग्रहण करें ।
श्राद्ध पक्ष में किए जाने वाले महत्वपूर्ण प्रयोग :
1- पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक
प्रतिदिन पंचबली का प्रयोग करें ।
पंचवली में मुख्य रूप से पांच बलि यानी दान से हैं- गाय कुत्ता,कौवा,चींटी एवं ब्राह्मण ।
इनमें प्रतिदिन दोपहर 12:00 से पहले अपने घर में जो भी भोजन तैयार होता है उसे एक थाली में लेकर पांच जगह पर चार- चार रोटियों के ऊपर सब्जी,गुड़ आदि रखें ।
2- मकान की दहलीज धोएं और कुमकुम
से सीधे हाथ की तरफ स्वस्तिक बनाएं ।
स्वस्तिक पर बड़े दिए में कंडे
रखकर घी से प्रज्वलित करें ।
3- एक कटोरी में घी, गुड मिलाए एवं पूजन की संपूर्ण थारी लगाएं जिसमें हल्दी, कुमकुम ,चावल ,फूल (हो सके तो सफेद फूल ) रखें ।
4 -सभी पांच बली खुटों में से थोड़ी -
थोड़ी रोटी तोड़ कर घी,गुड़ में मिलाएं ।
5 धूप प्रक्रिया-
(1) पहली धूप पहली पीढ़ी में पिता के वंश के माता के वंश में जो भी पितर है वो आए और मेरे हाथ से धूप,दीप नैवेद्य ग्रहण करें ।
(2) दूसरी धूप दूसरी पीढ़ी में पिता के वंश के माता के वंश में जो भी पितर है वो आएं और मेरे हाथ से धूप दीप नैवेद्य ग्रहण करें।
(3) तीसरी धूप तीसरी पीढ़ी में पिता के वंश के माता के वंश में जो भी पितर है वो आएं और मेरे हाथ से धूप ,दीप ,नैवेद्य ग्रहण करें।
(4) चौथी धूप चौथी पीढ़ी में पिता के वंश के माता के वंश में जो भी पितर है वो आएं और मेरे हाथ से धूप दीप नैवेद्य ग्रहण करें।
(5) पांचवी धूप पांचवी पीढ़ी में पिता के वंश के माता के वंश में जो भी पितर है वो आएं और मेरे हाथ से धूप दीप नैवेद्य ग्रहण करें।
(6) छठी धूप छठी पीढ़ी में पिता के वंश के माता के वंश में जो भी पितर है वो आएं और मेरे हाथ से धूप दीप नैवेद्य ग्रहण करें।
(7) सातवीं धूप सातवी पीढ़ी में पिता के वंश के माता के वंश में जो भी पितर है वो आएं और मेरे हाथ से धूप दीप नैवेद्य ग्रहण करें।
(8) आठवीं सधूप, नैवेद्य समस्त ज्ञात - अज्ञात पितरों के लिए जिन आंखों से देखा नहीं , जिनके बारे में सुना नहीं , जिनके बारे में जानते नहीं वह भी पितर आएं और मेरे हाथ से धूप ,दीप,नैवेद्य ग्रहण करें ।
(9) नवी धूप समस्त गुरु परंपरा के लिए जो भी समस्त गुरु परंपरा में गुरु हैं,वे आए और मेरे हाथ से धूप,दीप , नैवेद्य ग्रहण करें ।
(10) दसवीं धूप अपनी गायों एवं कुत्तों के लिए हमारे कुलपरंपरा में जो भी गौ माता एवं भैरव हैं वह आए वह मेरे हाथ से धूप, दीप,नैवेद्य ग्रहण करें ।
(11) हाथ में जल लेकर दिये के ऊपर से 3 बार घुमाएं और अंगूठे की धार से जमीन पर जल छोडे।जल छोड़कर घुटने टेक कर पाव पडकर उठे ।
आप सभी से निवेदन है कि आप अपने पित्रो को श्राद्ध तर्पण जरूर करें।
और अधिक से अधिक सभी लोगों को भेज कर अपने सनातनी और हिन्दू होने का परिचय देवे ।
||सर्व पितृदेवो प्रणाम आपको ||
आप का दिन शुभ हो
🌹🌹🌹🌹🌹जय श्री कृष्ण🙏🙏🙏🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Ramanatha Swami Covil Car Parking Ariya Strits , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

बहुत सुंदर 🙏🙏🙏
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