google() // Google's Maven repository https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 1. आध्यात्मिकता के नशा की संगत और ज्योतिष : मासिक कालाष्टमी नियम एवं विधि https://sarswatijyotish.com

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લેબલ मासिक कालाष्टमी नियम एवं विधि https://sarswatijyotish.com સાથે પોસ્ટ્સ બતાવી રહ્યું છે. બધી પોસ્ટ્સ બતાવો
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सोम प्रदोष व्रत , मासिक कालाष्टमी नियम एवं विधि :

सोम प्रदोष व्रत , मासिक कालाष्टमी नियम एवं विधि :


सोम प्रदोष व्रत 


हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का बड़ा महत्व है। 

यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है। 

ऐसी मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से भोलेनाथ की पूजा - अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और कष्टों का अंत होता है। 

प्रत्येक माह में दो प्रदोष व्रत पड़ते हैं एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष में।




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प्रदोष व्रत कब है ?


हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 23 जून को देर रात 01 बजकर 21 मिनट पर शुरू होगी। 

वहीं, इसकी समाप्ति 23 जून को रात 10 बजकर 09 मिनट पर होगी। 

इस दिन प्रदोष काल की पूजा का महत्व है। ऐसे में 23 जून को आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष का अंतिम प्रदोष व्रत रखा जाएगा। 

इस के साथ ही भगवान शिव की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 07 बजकर 22 मिनट से लेकर 09 बजकर 23 मिनट तक रहेगा।


प्रदोष व्रत का धार्मिक महत्व :


प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। 

प्रदोष शब्द का अर्थ है रात की शुरुआत होने वाला समय, जो सूर्यास्त के बाद और रात्र के आगमन से पहले का समय होता है। 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं और सभी देवी - देवता उनकी पूजा करते हैं। 

इस शुभ समय में शिव पूजा करने से भक्तों को रोग - दोष से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख - शांति आती है।


प्रदोष व्रत पूजा विधि :


इस दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान करें।

इसके बाद भगवान शिव का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।

सुबह भगवान शिव की पूजा विधिवत करें।

इसके बाद शाम के समय एक वेदी पर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें।

गंगाजल से अभिषेक करें।

उन्हें बेलपत्र, धतूरा, भांग, शमी पत्र, सफेद चंदन, अक्षत, धूप, दीप, फल और मिठाई आदि चीजें चढ़ाएं।

'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का 108 बार जप करें।

शिव चालीसा और प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें।

अंत में आरती कर भगवान से प्रार्थना करें।


मासिक कालाष्टमी नियम एवं विधि :


कालाष्टमी हिंदू त्योहार है जो भगवान भैरव को समर्पित है और हर हिंदू चंद्र माह में 'कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि' ( चंद्रमा के घटते चरण के दौरान 8वें दिन ) पर मनाया जाता है।


' पूर्णिमा ' ( पूर्णिमा ) के बाद ' अष्टमी तिथि ' ( 8 वां दिन ) भगवान काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए सबसे उपयुक्त दिन माना जाता है। 

इस दिन हिंदू भक्त भगवान भैरव की पूजा करते हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं। 

एक वर्ष में कुल 12 कालाष्टमी मनाई जाती हैं।


इनमें से 'मार्गशीर्ष' माह में पड़ने वाली जयंती सबसे महत्वपूर्ण है और इसे 'कालभैरव जयंती' के नाम से जाना जाता है । 

कालाष्टमी रविवार या मंगलवार को पड़ने पर भी अधिक पवित्र मानी जाती है, क्योंकि ये दिन भगवान भैरव को समर्पित हैं।


कालाष्टमी पर भगवान भैरव की पूजा का पर्व देश के विभिन्न हिस्सों में पूरे उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है।


कालाष्टमी व्रत का नियम :


आदरणीय प्यारे मित्रों तथा गुरुजनों.... इससे पहले मैं एक पोस्ट किया था...की "मासिक कालाष्टमी व्रत रखने वाला मनुष्य भैरव जी का विशेष कृपापात्र होता है । 

किसी भी प्रकार का भैरवमंत्र उसके लिए सिद्धिप्रद रहता है ।" 


मासिक कालाष्टमी पालन हेतु सर्वप्रथम गंगा नदी अथवा किसी पवित्र नदी में इसके अभाव में कहीं पर भी शुद्ध जल में स्नान करलें । 

उसके पश्चात या तो किसी भैरव मंदिर में जाकर या फिर घर में भैरव जी के नाम से अखंडित सुपारी स्थापित करके । 

पूजन से पहले अपना नाम गोत्र किस क्षेत्र में रहते हैं आदि बोलते हुए..... कहिए कि है प्रभु मैं आज अमुक महीना की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि... में... आप श्री भैरवपरमात्मा देवता की प्रसन्नता हेतु आशीर्वाद प्राप्ति हेतु अखंड उपवास युक्त व्रत का संकल्प लेता हूं ।

( गर्भवती, बालक, वृद्ध,तथा क्षुधातुर "अखंड उपवास युक्त व्रत" ना बोलकर "श्री भैरव प्रसाद समेत नक्तव्रत" वोलें )  । 

हालांकि कहीं - कहीं पर यह अवश्य लिखा गया है कि "नक्तव्रत" यानी कि दिनभर उपवास रहकर अगर रात्रि में भोजन करेंगे तो.... दिनभर उपवास रहना अनिवार्य हो जाता है । 

पर वर्तमान की स्थिति परिस्थिति आदि को देखकर मैं आप लोगों को यह सुझाव दे रहा हूं कि.... अगर आप दिनभर उपवास नहीं रह पाते हैं तो एक काम कीजिए जो भी फल आप लाए होंगे उसे सबको आप भैरव जी को भोग के रूप में चढ़ा दीजिएगा..... तथा भोजन के रूप में नहीं अपितु भोग के रूप में उसे ग्रहण कर लीजिएगा । 


इस प्रकार आपका संकल्प भी नहीं टूटेगा । 

और आप दुर्बल भी नहीं हो जाएंगे । 

सुबह के समय मध्यान्ह काल में तथा रात्रि काल में भैरव जी का नाना विध उपचार से पूजन करने के पश्चात.... उन्हें भोग अवश्य लगाएं। 

सुबह के समय विभिन्न प्रकार के खाने योग्य फल आदि को भोग के रूप में अर्पित करें । 

मध्यान्न काल में भी फल का ही भोग लगाएं । 

रात्रि काल में पूड़ी , आटे तथा गुड से बनी पदार्थ , उड़द की दाल तथा गुड़ से बनी पदार्थ, आदि का भोग लगाएं। 

रात्रि काल में भोग अर्पित करने से पूर्व कांसे की पात्र में नारियल का जल डालकर उस पात्र में एक जायफल डाल दें.... तथा इसे भैरव जी को अर्पित कर दें । 

भोग लगाने के बात... जो जो चीजें आप भोग लगाए हैं... उसे प्रेम पूर्वक प्रसाद के रूप में सेवन करें । 

अखंड दीपक प्रज्वलन पूर्वक रात भर जाग्रत रहें । रात्रि जापन के बाद सुबह प्रातः काल भैरव जी का साधारण पूजन करें । 

अन्य सामग्री जिसे आप पहले पूजन किए थे उन सबको इकट्ठा करके किसी बहते हुए जल राशि में प्रवाहित कर दें । 

अखंडित सुपारी को जिन्हे आप भैरव जी के स्वरूप मानकर पूजन किए थे.... उन्हें भी वेहते हुए जल राशि में प्रवाहित कर दें। 

आने वाले अगले महीने के कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि में फिर इसी भांति कालाष्टमी का परिपालन करें।


कालाष्टमी के दौरान अनुष्ठान :


कालाष्टमी भगवान शिव के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। 

इस दिन भक्त सूर्योदय से पहले उठते हैं और जल्दी स्नान करते हैं। 

वे काल भैरव का दिव्य आशीर्वाद पाने और अपने पापों के लिए क्षमा मांगने के लिए उनकी विशेष पूजा करते हैं।


भक्त शाम के समय भगवान काल भैरव के मंदिर भी जाते हैं और वहां विशेष पूजा - अर्चना करते हैं। 

ऐसा माना जाता है कि कालाष्टमी भगवान शिव का रौद्र रूप है। 

उनका जन्म भगवान ब्रह्मा के ज्वलंत क्रोध और क्रोध को समाप्त करने के लिए हुआ था।


कालाष्टमी पर सुबह के समय मृत पूर्वजों के लिए विशेष पूजा और अनुष्ठान भी किए जाते हैं।


भक्त पूरे दिन कठोर उपवास भी रखते हैं। 

कुछ कट्टर भक्त पूरी रात जागकर रात्रि जागरण करते हैं और महाकालेश्वर की कहानियाँ सुनकर अपना समय व्यतीत करते हैं। 

कालाष्टमी व्रत का पालन करने वाले को समृद्धि और खुशी का आशीर्वाद मिलता है और उसे अपने जीवन में सभी सफलताएं प्राप्त होती हैं।


काल भैरव कथा का पाठ करना और भगवान शिव के मंत्रों का जाप करना शुभ माना जाता है।


कालाष्टमी के दिन कुत्तों को खाना खिलाने का भी रिवाज है क्योंकि काले कुत्ते को भगवान भैरव का वाहन माना जाता है। 

कुत्तों को दूध, दही और मिठाई खिलाई जाती है।


काशी जैसे हिंदू तीर्थ स्थानों पर ब्राह्मणों को भोजन कराना अत्यधिक फलदायी माना जाता है।


कालाष्टमी का महत्व :


कालाष्टमी की महिमा 'आदित्य पुराण' में बताई गई है। 

कालाष्टमी पर पूजा के मुख्य देवता भगवान काल भैरव हैं जिन्हें भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है।


हिंदी में 'काल' शब्द का अर्थ 'समय' है जबकि 'भैरव' का अर्थ 'शिव की अभिव्यक्ति' है। 

इस लिए काल भैरव को 'समय का देवता' भी कहा जाता है और भगवान शिव के अनुयायियों द्वारा पूरी भक्ति के साथ उनकी पूजा की जाती है।


हिंदू किंवदंतियों के अनुसार, एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच बहस के दौरान ब्रह्मा द्वारा की गई एक टिप्पणी से भगवान शिव क्रोधित हो गए। 

फिर उन्होंने 'महाकालेश्वर' का रूप धारण किया और भगवान ब्रह्मा का 5वां सिर काट दिया।


तभी से देवता और मनुष्य भगवान शिव के इस रूप को 'काल भैरव' के रूप में पूजते हैं। 

ऐसा माना जाता है कि जो लोग कालाष्टमी पर भगवान शिव की पूजा करते हैं वे भगवान शिव का उदार आशीर्वाद चाहते हैं।


यह भी प्रचलित मान्यता है कि इस दिन भगवान भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन से सभी कष्ट, दर्द और नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाते हैं।


🌼संक्षिप्त भैरव साधना🌼

मंत्र संग्रह पूर्व-पीठिका


मेरु - पृष्ठ पर सुखासीन, वरदा देवाधिदेव शंकर से !!

पूछा देवी पार्वती ने, अखिल विश्व-गुरु परमेश्वर से !

जन-जन के कल्याण हेतु, वह सर्व-सिद्धिदा मन्त्र बताएँ !!


जिससे सभी आपदाओं से साधक की रक्षा हो, वह सुख पाए !

शिव बोले, आपद् - उद्धारक मन्त्र, स्तोत्र  मैं बतलाता,

देवि ! पाठ जप कर जिसका, है मानव सदा शान्ति - सुख पाता !!


                !! ध्यान !!


सात्विकः-

बाल-स्वरुप वटुक भैरव-स्फटिकोज्जवल-स्वरुप है जिनका,

घुँघराले केशों से सज्जित-गरिमा-युक्त रुप है जिनका,

दिव्य कलात्मक मणि-मय किंकिणि नूपुर से वे जो शोभित हैं !

भव्य-स्वरुप त्रिलोचन-धारी जिनसे पूर्ण-सृष्टि सुरभित है !

कर-कमलों में शूल-दण्ड-धारी का ध्यान-यजन करता हूँ !

रात्रि-दिवस उन ईश वटुक-भैरव का मैं वन्दन करता हूँ !!


राजसः-

नवल उदीयमान-सविता-सम, भैरव का शरीर शोभित है,

रक्त-अंग-रागी, त्रैलोचन हैं जो, जिनका मुख हर्षित है !

नील-वर्ण-ग्रीवा में भूषण, रक्त-माल धारण करते हैं !

शूल, कपाल, अभय, वर-मुद्रा ले साधक का भय हरते हैं !

रक्त-वस्त्र बन्धूक-पुष्प-सा जिनका, जिनसे है जग सुरभित,

ध्यान करुँ उन भैरव का, जिनके केशों पर चन्द्र सुशोभित !!


तामसः-

तन की कान्ति नील-पर्वत-सी, मुक्ता-माल, चन्द्र धारण कर,

पिंगल-वर्ण-नेत्रवाले वे ईश दिगम्बर, रुप भयंकर !

डमरु, खड्ग, अभय-मुद्रा, नर-मुण्ड, शुल वे धारण करते,

अंकुश, घण्टा, सर्प हस्त में लेकर साधक का भय हरते !

दिव्य-मणि-जटित किंकिणि, नूपुर आदि भूषणों से जो शोभित,

भीषण सन्त-पंक्ति-धारी भैरव हों मुझसे पूजित, अर्चित !!


!! तांत्रोक्त भैरव कवच !!


ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः !

पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु !!

पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा !

आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः !!

नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे !

वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः !!

भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा !

संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः !!

ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः !

सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः !!

रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु !

जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च !!

डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः !

हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः !!

पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः !

मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा !!

महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा !

वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा !!


!! भैरव वशीकरण मन्त्र !!


“ॐनमो रुद्राय, कपिलाय, भैरवाय, त्रिलोक- नाथाय, ॐ ह्रीं फट् स्वाहा ”

“ॐ भ्रां भ्रां भूँ भैरवाय स्वाहा। ॐ भं भं भं अमुक-मोहनाय स्वाहा ”

“ॐ नमो काला गोरा भैरुं वीर, पर-नारी सूँ देही सीर ! गुड़ परिदीयी गोरख जाणी, गुद्दी पकड़ दे भैंरु आणी, गुड़, रक्त का धरि ग्रास, कदे न छोड़े मेरा पाश ! जीवत सवै देवरो, मूआ सेवै मसाण ! पकड़ पलना ल्यावे ! काला भैंरु न लावै, तो अक्षर देवी कालिका की आण ! फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा !”


ॐ भैरवाय नम: !!*

ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवायनम:!

ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ !!


ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा !!


!! श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत् !!


विनियोग -

ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षणभैरव महामंत्रस्य श्री महाभैरव ब्रह्मा ऋषिः , त्रिष्टुप्छन्दः , त्रिमूर्तिरूपी भगवान स्वर्णाकर्षणभैरवो देवता, ह्रीं बीजं , सः शक्तिः, वं कीलकं मम् दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं स्वर्णं च प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः !!


अब बाए हाथ मे जल लेकर दाहिने हाथ की उंगलियों को जल से स्पर्श करके मंत्र मे दिये हुए शरीर के स्थानो पर स्पर्श करे !!


!! ऋष्यादिन्यास !!


श्री महाभैरव ब्रह्म ऋषये नमः शिरसि !

त्रिष्टुप छ्न्दसे नमः मुखे !

श्री त्रिमूर्तिरूपी भगवान

स्वर्णाकर्षण भैरव देवतायै नमः ह्रदिः !

ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये !

सः शक्तये नमः पादयोः !

वं कीलकाय नमः नाभौ !

मम् दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं

स्वर्णं च प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे !


मंत्र बोलते हुए दोनो हाथ के उंगलियों को आग्या चक्र पर स्पर्श करे ! 

अंगुष्ठ का मंत्र बोलते समय दोनो अंगुष्ठ से आग्या चक्र पर स्पर्श करना है !!


!! करन्यास !!


ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः !

ऐं तर्जनीभ्यां नमः !

क्लां ह्रां मध्याभ्यां नमः !

क्लीं ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः !

क्लूं ह्रूं कनिष्ठिकाभ्यां नमः !

सं वं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः !

अब मंत्र बोलते हुए दाहिने हाथ से मंत्र मे कहे गये शरीर के भाग पर स्पर्श करना है !!


!! हृदयादि न्यास !!


आपदुद्धारणाय हृदयाय नमः !

अजामल वधाय शिरसे स्वाहा !

लोकेश्वराय शिखायै वषट् !

स्वर्णाकर्षण भैरवाय कवचाय हुम् !

मम् दारिद्र्य विद्वेषणाय नेत्रत्रयाय वौषट् !

श्रीमहाभैरवाय नमः अस्त्राय फट् !

रं रं रं ज्वलत्प्रकाशाय नमः इति दिग्बन्धः !!


      अब दोनो हाथ जोड़कर ध्यान करे !!

( ध्यान मंत्र का  उच्चारण करें !!

जिसका हिन्दी में सरलार्थ नीचे दिया गया है ! वैसा ही आप भाव करें )


ॐ पीतवर्णं चतुर्बाहुं त्रिनेत्रं पीतवाससम् !

अक्षयं स्वर्णमाणिक्य तड़ित-पूरितपात्रकम् !!

अभिलसन् महाशूलं चामरं तोमरोद्वहम् !

सततं चिन्तये देवं भैरवं सर्वसिद्धिदम् !!


मंदारद्रुमकल्पमूलमहिते माणिक्य सिंहासने, संविष्टोदरभिन्न चम्पकरुचा देव्या समालिंगितः !

भक्तेभ्यः कररत्नपात्रभरितं स्वर्णददानो भृशं, स्वर्णाकर्षण भैरवो विजयते स्वर्णाकृति : सर्वदा !!


हिन्दी भावार्थ :- 

श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव जी मंदार (सफेद आक) के नीचे माणिक्य के सिंहासन पर बैठे हैं ! 

उनके वाम भाग में देवि उनसे समालिंगित हैं ! 

उनकी देह आभा पीली है तथा उन्होंने पीले ही वस्त्र धारण किये हैं ! 

उनके तीन नेत्र हैं ! 

चार बाहु हैं जिन्में उन्होंने स्वर्ण - माणिक्य से भरे हुए पात्र, महाशूल, चामर तथा तोमर को धारण कर रखा है ! 

वे अपने भक्तों को स्वर्ण देने के लिए तत्पर हैं। 

ऐसे सर्वसिद्धिप्रदाता श्री स्वर्णाकर्षण भैरव का मैं अपने हृदय में ध्यान व आह्वान करता हूं उनकी शरण ग्रहण करता हूं ! 

आप मेरे दारिद्रय का नाश कर मुझे अक्षय अचल धन समृद्धि और स्वर्ण राशि प्रदान करे और मुझ पर अपनी कृपा वृष्टि करें।

मानसोपचार पुजन के मंत्रो को मन मे बोलना है !


!! मानसोपचार पूजन !!


लं पृथिव्यात्मने गंधतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं गंधं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: !

हं आकाशात्मने शब्दतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं पुष्पं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: !

यं वायव्यात्मने स्पर्शतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं धूपं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: !

रं वह्न्यात्मने रूपतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं दीपं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: !

वं अमृतात्मने रसतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं अमृतमहानैवेद्यं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: !

सं सर्वात्मने ताम्बूलादि सर्वोपचारान् पूजां श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम: !!


!! मंत्र !!


ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं स: वं आपदुद्धारणाय अजामलवधाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय मम् दारिद्रय विद्वेषणाय ॐ ह्रीं महाभैरवाय नम: !!


मंत्र जाप के बाद स्तोत्र का एक पाठ अवश्य करे !!


!! श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्त्रोत् !!


!! श्री मार्कण्डेय उवाच !!


भगवन् ! प्रमथाधीश ! शिव-तुल्य-पराक्रम !

पूर्वमुक्तस्त्वया मन्त्रं, भैरवस्य महात्मनः !!

इदानीं श्रोतुमिच्छामि, तस्य स्तोत्रमनुत्तमं !

तत् केनोक्तं पुरा स्तोत्रं, पठनात्तस्य किं फलम् !!

तत् सर्वं श्रोतुमिच्छामि, ब्रूहि मे नन्दिकेश्वर !!


!! श्री नन्दिकेश्वर उवाच !!


इदं ब्रह्मन् ! महा-भाग, लोकानामुपकारक !

स्तोत्रं वटुक-नाथस्य, दुर्लभं भुवन-त्रये !!

सर्व-पाप-प्रशमनं, सर्व-सम्पत्ति-दायकम् !

दारिद्र्य-शमनं पुंसामापदा-भय-हारकम् !!

अष्टैश्वर्य-प्रदं नृणां, पराजय-विनाशनम् !

महा-कान्ति-प्रदं चैव, सोम-सौन्दर्य-दायकम् !!

महा-कीर्ति-प्रदं स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः !

न वक्तव्यं निराचारे, हि पुत्राय च सर्वथा !!

शुचये गुरु-भक्ताय, शुचयेऽपि तपस्विने !

महा-भैरव-भक्ताय, सेविते निर्धनाय च !!

निज-भक्ताय वक्तव्यमन्यथा शापमाप्नुयात् !

स्तोत्रमेतत् भैरवस्य, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मनः !!

श्रृणुष्व ब्रूहितो ब्रह्मन् ! सर्व-काम-प्रदायकम् !!


!! विनियोग !!


ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-स्तोत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-देवता, ह्रीं बीजं, क्लीं शक्ति, सः कीलकम्, मम-सर्व-काम-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः !!


!! ध्यान !!


मन्दार-द्रुम-मूल-भाजि विजिते रत्नासने संस्थिते !

दिव्यं चारुण-चञ्चुकाधर-रुचा देव्या कृतालिंगनः !!

भक्तेभ्यः कर-रत्न-पात्र-भरितं स्वर्ण दधानो भृशम् !

स्वर्णाकर्षण-भैरवो भवतु मे स्वर्गापवर्ग-प्रदः !!


!! स्त्रोत् -पाठ !!


ॐ नमस्तेऽस्तु भैरवाय, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मने !

नमः त्रैलोक्य-वन्द्याय, 

वरदाय परात्मने !!

रत्न-सिंहासनस्थाय, दिव्याभरण-शोभिने !

नमस्तेऽनेक-हस्ताय, 

ह्यनेक-शिरसे नमः !

नमस्तेऽनेक-नेत्राय, 

ह्यनेक-विभवे नमः !!

नमस्तेऽनेक-कण्ठाय, 

ह्यनेकान्ताय ते नमः !

नमोस्त्वनेकैश्वर्याय, 

ह्यनेक-दिव्य-तेजसे !!

अनेकायुध-युक्ताय, 

ह्यनेक-सुर-सेविने !

अनेक-गुण-युक्ताय, 

महा-देवाय ते नमः !!

नमो दारिद्रय-कालाय, महा-सम्पत्-प्रदायिने !

श्रीभैरवी-प्रयुक्ताय, 

त्रिलोकेशाय ते नमः !!

दिगम्बर ! नमस्तुभ्यं, 

दिगीशाय नमो नमः !

नमोऽस्तु दैत्य-कालाय, 

पाप-कालाय ते नमः !!

सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं, 

नमस्ते दिव्य-चक्षुषे !

अजिताय नमस्तुभ्यं, 

जितामित्राय ते नमः !

नमस्ते रुद्र-पुत्राय, 

गण-नाथाय ते नमः !

नमस्ते वीर-वीराय, 

महा-वीराय ते नमः !!

नमोऽस्त्वनन्त-वीर्याय, 

महा-घोराय ते नमः !

नमस्ते घोर-घोराय, 

विश्व-घोराय ते नमः !!

नमः उग्राय शान्ताय, 

भक्तेभ्यः शान्ति-दायिने !

गुरवे सर्व-लोकानां, 

नमः प्रणव-रुपिणे !!

नमस्ते वाग्-भवाख्याय, 

दीर्घ-कामाय ते नमः !

नमस्ते काम-राजाय, 

योषित्कामाय ते नमः !!

दीर्घ-माया-स्वरुपाय, 

महा-माया-पते नमः !

सृष्टि-माया-स्वरुपाय, 

विसर्गाय सम्यायिने !!

रुद्र- लोकेश- पूज्याय, 

ह्यापदुद्धारणाय च !

नमोऽजामल- बद्धाय, 

सुवर्णाकर्षणाय ते !!

नमो नमो भैरवाय, 

महा-दारिद्रय-नाशिने !

उन्मूलन-कर्मठाय, 

ह्यलक्ष्म्या सर्वदा नमः !!

नमो लोक-त्रेशाय, 

स्वानन्द-निहिताय ते !

नमः श्रीबीज-रुपाय, सर्व-काम-प्रदायिने !!

नमो महा-भैरवाय, 

श्रीरुपाय नमो नमः !

धनाध्यक्ष ! नमस्तुभ्यं, 

शरण्याय नमो नमः !!

नमः प्रसन्न-रुपाय, 

ह्यादि-देवाय ते नमः !

नमस्ते मन्त्र-रुपाय, 

नमस्ते रत्न-रुपिणे !!

नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, 

सुवर्णाय नमो नमः !

नमः सुवर्ण-वर्णाय, 

महा-पुण्याय ते नमः !!

नमः शुद्धाय बुद्धाय, 

नमः संसार-तारिणे !

नमो देवाय गुह्याय, 

प्रबलाय नमो नमः !!

नमस्ते बल-रुपाय, 

परेषां बल-नाशिने !

नमस्ते स्वर्ग-संस्थाय, 

नमो भूर्लोक-वासिने !!

नमः पाताल-वासाय, 

निराधाराय ते नमः !

नमो नमः स्वतन्त्राय, 

ह्यनन्ताय नमो नमः !!

द्वि-भुजाय नमस्तुभ्यं, भुज-त्रय-सुशोभिने !

नमोऽणिमादि-सिद्धाय, 

स्वर्ण-हस्ताय ते नमः !!

पूर्ण-चन्द्र-प्रतीकाश-

वदनाम्भोज-शोभिने !

नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, स्वर्णालंकार-शोभिने !!

नमः स्वर्णाकर्षणाय, 

स्वर्णाभाय च ते नमः !

नमस्ते स्वर्ण-कण्ठाय, स्वर्णालंकार-धारिणे !!

स्वर्ण-सिंहासनस्थाय, 

स्वर्ण-पादाय ते नमः !

नमः स्वर्णाभ-पाराय, स्वर्ण-काञ्ची-सुशोभिने !!

नमस्ते स्वर्ण-जंघाय, भक्त-काम-दुघात्मने !

नमस्ते स्वर्ण-भक्तानां, कल्प-वृक्ष-स्वरुपिणे !!

चिन्तामणि-स्वरुपाय, नमो ब्रह्मादि-सेविने !

कल्पद्रुमाधः-संस्थाय, बहु-स्वर्ण-प्रदायिने !!

भय-कालाय भक्तेभ्यः, सर्वाभीष्ट-प्रदायिने !

नमो हेमादि-कर्षाय, 

भैरवाय नमो नमः !!

स्तवेनानेन सन्तुष्टो, 

भव लोकेश-भैरव !

पश्य मां करुणाविष्ट, 

शरणागत-वत्सल !

श्रीभैरव धनाध्यक्ष, 

शरणं त्वां भजाम्यहम् !

प्रसीद सकलान् कामान्, 

प्रयच्छ मम सर्वदा !!


!! फल-श्रुति !!


श्रीमहा-भैरवस्येदं, स्तोत्र सूक्तं सु-दुर्लभम् !

मन्त्रात्मकं महा-पुण्यं, सर्वैश्वर्य-प्रदायकम् !!

यः पठेन्नित्यमेकाग्रं, पातकैः स विमुच्यते !

लभते चामला-लक्ष्मीमष्टैश्वर्यमवाप्नुयात् !!

चिन्तामणिमवाप्नोति, धेनुं कल्पतरुं ध्रुवम् !

स्वर्ण-राशिमवाप्नोति, सिद्धिमेव स मानवः !!

संध्याय यः पठेत्स्तोत्र, दशावृत्त्या नरोत्तमैः !

स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य, साक्षाद् भूतो जगद्-गुरुः !

स्वर्ण-राशि ददात्येव, तत्क्षणान्नास्ति संशयः !

सर्वदा यः पठेत् स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः !!

लोक-त्रयं वशी कुर्यात्, अचलां श्रियं चाप्नुयात् !

न भयं लभते क्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव !!

म्रियन्ते शत्रवोऽवश्यम लक्ष्मी-नाशमाप्नुयात् !

अक्षयं लभते सौख्यं, सर्वदा मानवोत्तमः !!

अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजः प्रकीर्तितः !

दारिद्र्य-दुःख-शमनं, स्वर्णाकर्षण- कारकः !!

य येन संजपेत् धीमान्, स्तोत्र वा प्रपठेत् सदा !

महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-काले भवेद् ध्रुवं !!


!! श्री भैरव चालीसा !!

!! दोहा !!


श्री गणपति, गुरु गौरि पद, प्रेम सहित धरि माथ !

चालीसा वन्दन करों, श्री शिव भैरवनाथ !!

श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल !

श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल !!


जय जय श्री काली के लाला !

जयति जयति काशी- कुतवाला !!


जयति बटुक भैरव जय हारी !

जयति काल भैरव बलकारी !!


जयति सर्व भैरव विख्याता !

जयति नाथ भैरव सुखदाता !!


भैरव रुप कियो शिव धारण !

भव के भार उतारण कारण !!


भैरव रव सुन है भय दूरी !

सब विधि होय कामना पूरी !!


शेष महेश आदि गुण गायो ! काशी-कोतवाल कहलायो !!


जटाजूट सिर चन्द्र विराजत !

बाला, मुकुट, बिजायठ साजत !!


कटि करधनी घुंघरु बाजत !

दर्शन करत सकल भय भाजत !!


जीवन दान दास को दीन्हो !

कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो !!


वसि रसना बनि सारद-काली !

दीन्यो वर राख्यो मम लाली !!


धन्य धन्य भैरव भय भंजन !

जय मनरंजन खल दल भंजन !!


कर त्रिशूल डमरु शुचि कोड़ा !

कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा !!


जो भैरव निर्भय गुण गावत !

अष्टसिद्घि नवनिधि फल पावत !!


रुप विशाल कठिन दुख मोचन !

क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन !!


अगणित भूत प्रेत संग डोलत ! 

बं बं बं शिव बं बं बोतल !!


रुद्रकाय काली के लाला !

महा कालहू के हो काला !!


बटुक नाथ हो काल गंभीरा !

श्वेत, रक्त अरु श्याम शरीरा !!


करत तीनहू रुप प्रकाशा !

भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा !!


रत्न जड़ित कंचन सिंहासन !

व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन !!


तुमहि जाई काशिहिं जन ध्यावहिं !

विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं !!


जय प्रभु संहारक सुनन्द जय !

जय उन्नत हर उमानन्द जय !!


भीम त्रिलोकन स्वान साथ जय !

बैजनाथ श्री जगतनाथ जय !!


महाभीम भीषण शरीर जय !

रुद्र त्र्यम्बक धीर वीर जय !!


अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय !

श्वानारुढ़ सयचन्द्र नाथ जय !!


निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय !

गहत अनाथन नाथ हाथ जय !!


त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय !

क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय !!

श्री वामन नकुलेश चण्ड जय !

कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय !!


रुद्र बटुक क्रोधेश काल धर !

चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर !!


करि मद पान शम्भु गुणगावत !

चौंसठ योगिन संग नचावत !!


करत कृपा जन पर बहु ढंगा !

काशी कोतवाल अड़बंगा !!


देयं काल भैरव जब सोटा !

नसै पाप मोटा से मोटा !!


जाकर निर्मल होय शरीरा !

मिटै सकल संकट भव पीरा !!


श्री भैरव भूतों के राजा !

बाधा हरत करत शुभ काजा !!


ऐलादी के दुःख निवारयो !

सदा कृपा करि काज सम्हारयो !!


सुन्दरदास सहित अनुरागा !

श्री दुर्वासा निकट प्रयागा !!


श्री भैरव जी की जय लेख्यो !

सकल कामना पूरण देख्यो !!




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!! दोहा !!


जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार !

कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार !!

जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार !

उस घर सर्वानन्द हों, वैभव बड़े अपार !!


!! आरती श्री भैरव जी की !!


जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा !

जय काली और गौरा देवी कृत सेवा !! जय !!

तुम्हीं पाप उद्घारक दुःख सिन्धु तारक !

भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक !! जय !!

वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी !

महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी !! जय !!

तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे !

चौमुख दीपक दर्शन दुःख खोवे !! जय !!

तेल चटकि दधि मिश्रित भाषा वलि तेरी !

कृपा करिये भैरव करिए नहीं देरी !! जय !!

पांव घुंघरु बाजत अरु डमरु जमकावत !

बटुकनाथ बन बालकजन मन हरषावत !! जय !!

बटकुनाथ की आरती जो कोई नर गावे !

कहे धरणीधर नर मनवांछित फल पावे !! जय !!


!! साधना यंत्र !!


श्री बटुक भैरव का यंत्र लाकर उसे साधना के स्थान पर भैरव जी के चित्र के समीप रखें ! 

दोनों को लाल वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर यथास्थिति में रखें ! 

चित्र या यंत्र के सामने माला, फूल, थोड़े काले उड़द चढ़ाकर उनकी विधिवत पूजा करके लड्डू का भोग लगाएं !!


!! साधना का समय !!


इस साधना को किसी भी मंगलवार या मंगल विशेष भैरवाष्टमी के दिन आरम्भ करना चाहिए शाम 7 से 10 बजे के बीच नित्य 41 दिन करने से अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होती है !!


!! साधना की चेतावनी !!


साधना के दौरान खान-पान शुद्ध रखें !!

सहवास से दूर रहें ! वाणी की शुद्धता रखें और किसी भी कीमत पर क्रोध न करें !!

यह साधना किसी गुरु से अच्छे से जानकर ही करें !!


!! साधना नियम व सावधानी !!


1 :-  यदि आप भैरव साधना किसी मनोकामना के लिए कर रहे हैं तो अपनी मनोकामना का संकल्प बोलें और फिर साधना शुरू करें !!


2 :- यह साधना दक्षिण दिशा में मुख करके की जाती है !!


3 :-  रुद्राक्ष या हकीक की माला से मंत्र जप किया जाता है !!


4 :-  भैरव की साधना रात्रिकाल में ही करें !!


5 :-  भैरव पूजा में केवल तेल के दीपक का ही उपयोग करना चाहिए !!


6 :-  साधक लाल या काले वस्त्र धारण करें !!


7 :-  हर मंगलवार को लड्डू के भोग को पूजन- साधना के बाद कुत्तों को खिला दें और नया भोग रख दें !!

पंडारामा प्रभु राज्यगुरु 

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